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याति || ३७८||
विजयोदया टीका
भगवं अणुग्गहों मे जं तु सदेहोव्व पालिदा अम्हे । सारणवारणपडिचोदणाओ धण्णा हु पावेंति ||३७९ ॥
'भगवं अणुंग्गहो में' भगवन्ननुग्रहोऽस्माकं । 'जं तु सवेहोव्व पालिदा अम्हे' यत्स्वशरीरमिव पालिता वयम् | 'सारणवारणपडिचोयणाओ' एवं कुरुत, "मैवं कृथाः इति शिक्षा । 'धण्णा पावेति' धन्याः प्राप्नुवन्ति ।। ३७९ ।।
अम्हे वि खमावेमो जं अण्णाणा पमादरागेहिं । पडिलोमिदा य आणा हिदोवदेसं करिताणं || ३८० ||
'अम्हे विमावेमो' वयमपि क्षमां ग्राहयामः । 'अण्णाणा' अज्ञानात् । 'पमादरार्गोह' प्रमादाद्रागाच्च । 'जं पडिलोमिदा अम्हे' भवतां प्रतिकूलवृत्तयो यद्वयं जाताः । ' आणाहिदोवदेसं करंताणं' आज्ञां हितोपदेशं कुर्वताम् ||३८० ॥
सहिदय सकण्णयाओ कदा सचक्खू य लद्धसिद्धिपहा । तुझ वियोगेण पुणो णट्ठदिसाओ भविस्सामो || ३८१ ।।
३०५
'सहिदय सकण्णयाओ' सहृदयाः सकर्णकाश्च जाताः । 'कदा सचक्खू य' कृताः सलोचनाः । 'लद्धसिद्धिपहा ' लब्धसिद्धिमार्गाः । 'तुज्झ वियोगेण पुणो भवद्भधो वियोगेन पुनः । 'णट्ठदिसाओ' नष्टदिक्काः । 'भविस्सामो' भविष्यामः ॥ ३८१ ॥
सव्वजयजीव दिए थेरे सव्वजगजीवणाथम्मि
पवसंतेय मरते देसा किर सुण्णया होंति ।। ३८२ ॥
'सन्वजयजी वहिदगे' सर्वस्मिञ्जगति ये जीवाः तेषां हिते । 'थेरे' ज्ञानतपोवृद्धे । 'सव्वजग जीव
आनन्दके आँसू गिराता है || ३७८||
गा०—भगवत् ! आपका हमपर बड़ा अनुग्रह है । आपने अपने शरीर की तरह हमारा पालन किया है । तथा 'यह करो' और 'यह मत करो' इत्यादि शिक्षा दी है । भाग्यशाली ही ऐसी शिक्षा प्राप्त करते हैं ||३७९ ॥
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गा० - आपकी आज्ञा और हितका उपदेश करनेपर हमने जो अज्ञान प्रमाद और रागवश उसके प्रतिकूल आचरण किया, उसके लिये हम भी आपसे क्षमा माँगते हैं ||३८० || --
१. मा कुरुत मु० ! ३९
गा०- - आपने हमें हृदय युक्त अर्थात् विचारशील बनाया । हमें सकर्ण बनाया अर्थात् आपके उपदेश सुनकर कानोंका फल प्राप्त किया । आपने हमें आँखें प्रदान कीं अर्थात् हमें शास्त्र स्वाध्यायमें लगाया । तथा आपके प्रसादसे हमने मोक्षका मार्ग प्राप्त किया । अब आपके वियोग से हम दिशाहीन हो जायेंगे। हमें कोई मार्ग दिखाने वाला नहीं रहेगा || ३८१ ॥
गा०—समस्त जगत् के जीवोंका हित करने वाले, ज्ञान और तपसे वृद्ध तथा समस्त जगत्
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