________________
३८३
विजयोदया टीका अच्छाहि ताव सुविहिद वीसत्थो मा य होहि उव्वादो।
पडिचरएहिं समंता इणमटुं संपहारेमो ॥५१६।। 'अच्छाहि ताव सुविहिद' आस्स्व तावद्यते । 'वीसत्थं' विश्वरतं । 'मा य होहि उव्वादो' व्याकुलितचित्तो मा च भूः । 'पडिचरहिं समं' प्रतिचारकैः सह । 'इणमत्थं' इदं प्रयोजनं । 'संपहारेमो' संप्रधारयामः । 'उवसंपा' निरूपिता ॥५१६॥ इत उत्तरं पडिच्छा इति सूत्रपदव्याख्या
तो तस्स उत्तमढे करणुच्छाहं पडिच्छदि विदण्हू ।
खीरोदणदबुग्गहदुगुंछणाए समाधीए ।।५१७।। 'तो' पश्चात् । 'तस्स' तस्य क्षपकस्य । 'उत्तमट्ठकरणुच्छाह' रत्नत्रयाराधनाक्रियोत्साहं । 'पडिच्छदि' परीक्षते । 'विदह' मार्गज्ञः । कथं ! 'खोरोदणदव्वग्गहदुगंछणाए' क्षीरोदनद्रव्यग्रहणं मनोज्ञाहारग्रहणं जुगुप्सापरेण । 'समाधीए' समाधिनाहारगतं लौल्यमस्य किं विद्यते न वेति परीक्षते । इयमेका परीक्षा । समाधिणिमित्तं पडिच्छा ॥५१७॥
खवयस्सुवसंपण्णस्स तस्स आराधणा अविक्खेवं ।
दिव्वेण णिमित्तेण य पडिलेहदि अप्पमत्तो सो ।।५१८।। 'खवगस्स' क्षपकस्य । 'उवसंपण्णस्स' आत्मान्तिकमुपाश्रितस्य । 'तस्स' तस्य । 'आराहणा अविखेवं' आराधनाया अविक्षेपं । 'पडिलेहदि' परीक्षते । कः ? 'सो' स सूरिनिर्यापकः । 'अप्पमत्तो' प्रमादरहितः । केण ? 'दिव्वेण देवतोपदेशेन । 'णिमित्तण' निमित्तेन वा इयमेका परीक्षा ॥५१८॥
करनेका निश्चय किया। रत्नत्रयकी आराधनासे कर्मोंका विनाश होता है । उनका विनाश होनेसे दुःखसे छुटकारा होता है ॥५१५।।
___ गा-हे सुविहित ! विश्वस्त होकर तब तक बैठो। अपना चित्त व्याकुल मत करो । हम वैयावृत्य करने वालोंके साथ इस विषय पर विचार करते हैं ।।५१६॥
'उवसंपा' का कथन पूर्ण हुआ। आगे गाथाके 'पडिच्छा' (परीक्षा) पदका व्याख्यान करते हैं
गा०-उसके पश्चात् मार्गको जाननेवाले आचार्य क्षपकके रत्नत्रयकी आराधना करने में उत्साहकी परीक्षा करते हैं कि उसके आराधना करनेका उत्साह है या नहीं है। तथा दूध भात आदि द्रव्यको ग्रहण करने में इसकी लोलुपता है या ग्लानि है ऐसी परीक्षा करते हैं । यहाँ दूधभात मनोज्ञ आहारका उपलक्षण है। अतः आहारके सम्बन्धमें उसकी परीक्षा करते हैं। यह परीक्षा समाधिके निमित्त की जाती है ।।५१७।।
परीक्षाका कथन समाप्त हुआ। गा०-आराधनाके निमित्तसे अपने पास आये क्षपककी आराधना नि विघ्न होनेके लिए
१. ग्रहणोपलक्षणं मु० । 'खीरोदणदबुग्गहदुगुंछणाए' क्षीरोदनद्रव्यं मनोज्ञाहारोपलक्षणं तस्य अवग्रहो ग्रहणं तत्र विचिकित्सा निन्दा तया ।'-मूलारा० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org