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भगवती आराधना देशे । 'अणाबाघे' अमार्गे बहुजनमध्ये एकमुखं न भवति चित्तं । मार्ग स्थितः परकार्यव्याघातकृद्भवति इति मत्वा एकान्ते । अमार्गश्च कायोत्सर्गदेश आख्यातः ॥५५२।। कायोत्सर्ग किमर्थं करोति आलोचयितुकामः इत्याशङ्कायां कायोत्सर्गस्य उपयोगमाचष्टे- .
एवं ख वोसरिता देहे वि उवेदि णिम्ममत्तं सो।
णिम्ममदा णिस्संगो णिस्सल्लो जाइ एयत्तं ॥५५३।। ‘एवं खु' इत्यादिना । एवमित्यनन्तरसूत्रनिर्दिष्टक्रमेण । प्राङ्मुख उदङ्मुखश्चैत्याभिमुखो वा । एकान्ते मार्गे । वोसरित्ता त्यक्त्वा कि ? न हि त्याज्यमन्तरेण त्यागो युज्यते । देहमिति चेत् 'देहे वि उर्वदि णिम्ममत्तं सो' इति न घटते निर्ममतैव ननु त्यागः । भिन्नयोः पूर्वापरकालविषययोः क्रिययोर्यत्र एकः कर्ता तत्र पूर्वकालक्रियावचनात् क्त्वा विधीयते । अत्रोच्यते वचसा त्यागः 'वोसरित्ता' इत्यनेन उच्यते । मनसा ममायं न भवति देह इति त्याग पश्चात्तन्यते । तेन वाङ्मनःकरणभेदात्यागो भिद्यते । 'णिम्ममदा णिस्संगो' निर्ममतया निस्संगो निष्परिग्रहः । "णिस्सल्लो' निःपरिग्रहत्वादेव निःशल्यः । 'एकत्तं जादि' एकत्वभावनां प्रतिपद्यते ॥५५३।।
होता है अतः कायोत्सर्ग आलोचनाका कारण है । बहुतसे लोगोंके मध्यमें चित्त एकाग्र नहीं होता तथा रास्तेमें खड़े होकर कायोत्सर्ग करनेसे दूसरोके कार्य में बाधा आती है। ऐसा मानकर कायोत्सर्गका स्थान एकान्त और मार्गरहित कहा है ।।५५२॥
___ आलोचना करनेवाला कायोत्सर्ग क्यों करता है ऐसी शंका होनेपर कायोत्सर्गका उपयोग कहते हैं
गा०-टो०-इस प्रकार आलोचनाके लिए एकान्त स्थानमें पूरबके सन्मुख अथवा उत्तरके सन्मुख अथवा जिनबिम्बके सन्मुख होकर 'मैं शरीरका त्याग करता हूँ' इस प्रकार वचनसे त्याग करके 'यह शरीर मेरा नहीं है। इस प्रकार मनसे त्याग करता है। अतः वचन और मनके भेदसे त्यागके दो भेद होते हैं। इस प्रकारसे शरीर ममत्व त्यागकर निर्ममत्वको प्राप्त होता है और निर्ममत्वको प्राप्त होनेसे बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रहसे रहित होता है। परिग्रह रहित होनेसे ही निःशल्य होकर एकत्वभावनाको प्राप्त होता है।
___ शङ्का-'त्याज्यके विना त्याग नहीं होता। यदि देहका त्याग करता है तो देह में भी निर्ममत्व होता है' यह कथन नहीं घटता। क्योंकि शरीरमें निर्ममत्व ही शरीरका त्याग है। आगे पीछे होनेवाली दो भिन्न क्रियाओंका कर्ता जहाँ एक ही होता है वहाँ पूर्वकालको क्रियासे 'क्त्वा' (करके) प्रत्यय किया जाता है। शंकाकारका अभिप्राय यह है कि गाथामें कहा है कि देहका त्याग करके देहमें निर्ममत्व होता है। किन्तु देहका त्याग और देहमें निर्ममत्व यह भिन्न कार्य नहीं हैं निर्ममत्व ही त्याग है । अतः देहका त्याग करके देहमें निर्ममत्व होता है ऐसा कहना ठीक नहीं है।
समाधान-'वोसरित्ता' शब्दसे वचनसे त्याग कहा है। उसके पश्चात् ही 'यह शरीर मेरा नहीं है' इस प्रकार मनसे त्याग होता है। अतः वचन और मनके भेदसे त्यागमें भेद होनेसे उक्त कथन घटित होता है ।
१. बनायां प्र-अ०।
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