________________
भगवती आराधना
बाह्यचेलादिग्रन्थत्यागोऽभ्यन्तरपरिग्रहत्यागमूलः । यथा तुषनिराकरणमभ्यन्तरमल निरासोपायः अतुषं धान्यं नियमेन शुद्धयति । भाज्या तु ह्यसतुषस्य शुद्धिः । एवमचेलवति नियमादेव भाज्या सचेले । वीतरागद्वेषता च गुणः । सचेलो हि मनोज्ञे वस्त्रे रक्तो भवति । दुष्यत्यमनोज्ञे । वाह्यद्रव्यालम्बनौ हि रागद्वेषौ तावसति परिग्रहे न भवतः । किं च शरीरे अनादरो गुणः शरीरगतादरवशेनैव हि जनोऽसंयमे परिग्रहे च वर्तते । अचेलेन तु तदादरस्त्यक्तः, वातातपादिबाधासहनात् । स्ववशता च गुणः देशान्तरगमनादौ सहायाप्रतीक्षणात् । पिच्छमात्रं गृहीत्वा हि त्यक्तसकलपरिग्रहः पक्षीव यातीति । सचेलस्तु सहायपरवशः चौरभयात् भवति परवशमानसश्च कथं संयमं पालयेत् । चेतोविशुद्धिप्रकटनं च गुणोऽचेलतायां । कौपीनादिना प्रच्छादयतो भावशुद्धिर्न ज्ञायते । निश्चेलस्य तु निर्विकारदेहतया स्फुटा विरागता । निर्भयता च गुणः । ममेदं किमपहरन्ति चौरादयः, किं ताडयन्ति बघ्नन्तीति वा भयमुपैति सचेलो नाचेलो, भयातुरो वा किं न कुर्यात् । सर्वत्र विश्रब्धता च गुणः । निष्परिग्रहः न किंचनापि शङ्कते । सचेलस्तु प्रतिमार्गयायिनं अन्यं वा दृष्ट्वा न तत्र विश्वासं करोति । को वेत्ययं किं करोति इति । अप्रतिलेखनता च गुणः । चतुर्दशविधं उपधि गृहृतां बहुप्रतिलेखनता न तथाचेलस्य । परिकर्मवर्जनं च गुणः । उद्व ेष्टनं, मोचनं, सीवनं, बंधनं, रंजनं इत्यादिकमनेकं परिकर्म
३२२
विघ्न होता है । जो निःसंग है उसके इस प्रकारकी बाधा नहीं होती। सूत्र पौरुषी और अर्थपौरुषी में निर्विघ्नता रहती है तथा स्वाध्याय और ध्यान की भावना होती है ।
है
अचेलता में एक गुण परिग्रहका त्याग है । बाह्य वस्त्र आदि परिग्रहका त्याग अभ्यन्तर परिग्रहके त्यागका मूल है। जैसे धानके छिलकेको दूर करना उसके अभ्यन्तर मलको दूर करनेका उपाय है | बिना छिलकेका धान्य नियमसे शुद्ध होता है । किन्तु जिसपर छिलका लगा है उसकी शुद्धि नियमसे नहीं होती । इसी प्रकार जो अचेल है उसकी अभ्यन्तर शुद्धि नियमसे होती है किन्तु जो सचेल है उसकी शुद्धि भाज्य है । अचेलता में रागद्वेषका अभाव एक गुण है जो वस्त्र धारण करता है वह मनको प्रिय सुन्दर वस्त्रसे राग करता है और मनको अप्रिय वस्त्रसे द्वेष करता है | राग और द्वेष बाह्य द्रव्यके अवलम्बनसे होते हैं । परिग्रहके अभाव में राग द्वेष नहीं होते । तथा शरीरमें अनादर भी अचेलताका गुण हैं । शरीरमें आदर होनेसे मनुष्य असंयम और परिग्रहमें प्रवृत्ति करता है । जो अचेल होता है उसका शरीरमें आदरभाव नहीं होता । तभी तो वह वायु धूप आदिका कष्ट सहता है । अचेलता में स्वाधीनता भी एक गुण क्योंकि देशान्तर में जाने आदिमें सहायकी प्रतीक्षा नहीं करनी होती । समस्त परिग्रहका त्यागी पीछी मात्र लेकर पक्षी की तरह चल देता है । जो सचेल होता है वह सहायके परवश होता है तथा चोरके भयसे उसका मन भी परवश होता है वह संयमको कैसे पाल सकता है । तथा अचेलता में चित्तकी विशुद्धिको प्रकट करने का भी गुण है । लंगोटी वगैरहसे ढाँकनेसे भावशुद्धिका ज्ञान नहीं होता । किन्तु वस्त्र रहित के शरीर के विकार रहित होनेसे विरागता स्पष्ट दीखती है । अचेलता में निर्भयता गुण है। चोर आदि मेरा क्या हर लेंगे, क्यों वे मुझे मारेंगे या बाँधेंगे। किन्तु सवस्त्र डरता है और जो डरता है वह क्या नहीं करता । सर्वत्र विश्वास भी अचेलता का गुण है। जिसके पास कोई परिग्रह नहीं वह किसी पर भी शंका नहीं करता । किन्तु जो सवस्त्र है वह ता मार्ग में चलने वाले प्रत्येक जन पर अथवा अन्य किसी को देखकर उस पर विश्वास नहीं करता । यह कौन है क्या करता है यह शंका होती है । अचेलता में प्रतिलेखनाका न होना भी एक गुण है । चौदह प्रकारकी परिग्रह रखनेवालों को बहुत प्रतिलेखना करना होती है, अचेलको वैसी प्रतिलेखना नहीं करना पड़ती । परिकर्मका नहीं होना भी एक गुण अचेलका है । सवस्त्रको लपेटना, छोड़ना,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org