________________
१४६
भगवती आराधना
दर्शनविनयसूचनपरोत्तरगाथा
उवगृहणा दिया पुब्बुत्ता तह भत्तिया दिया य गुणा ।
संकादिवज्जणं पि ओ सम्मत्तविणओ सो ॥११३।। उवगृहणादिगा उपबृंहणादिकाः । उपबृंहणं, स्थितिकरणं, वात्सल्यं, प्रभावना चेत्येते । 'पुव्वुत्ता' पूर्वाचार्यैरुक्ताः पूर्वोक्ताः । अस्मात् सूत्रात्पूर्वेण व सूत्रेण "उवगृहणठिदिकरणं वच्छल्लपभावणा भणिदा" इत्यनेनोक्ताः पूर्वमुक्ताः । पूर्वोक्तो वा सम्मत्तविणओ सम्यक्त्वविनय इति संबंधनीयं । 'तध भत्तिय गुणा' तथा भक्त्यादिकाश्च गुणाः विनयस्तथा ते तत्प्रकारेण अवस्थिताः इति । अहंदादिविषया भक्त्यादिगुणा इति यावत । 'संकादिवज्जणं पिय' शंकादिवर्जनं च । चशब्दः पादपुरणः । 'णेओ' ज्ञेयः ।। 'सम्मत्तविणओ' सम्यक्त्वविनय इति ।। उपबृंहणादीनां भक्त्यादीनां च गुणानां बहुत्वात् तेषामेव च विनयत्वात् सम्मत्तविणया इति वाच्यमिति चेत्, विनयसामान्यापेक्षया तस्यैकत्वादेकवचनेन पदसंस्कारः कृतो न निवर्तते । न च पदांतरवाच्यापेक्षया बहुत्वमस्तीत्येतावता अप्रतिपदिकात् सुबुत्पद्यते । तथा च प्रयोगः वृक्षा वनमिति ॥११३।। चारित्रविनयनिरूपणापरा गाथा
इंदियकसायपणिधाणं पि य गुत्तीओ चेव समिदीओ।
एसो चरित्तविणओ समासदो होइ णायन्वो ॥११४।। आगे दर्शनविनयका कथन करते हैं
गा०—पूर्वोक्त उपगृहण या उपवृंहण आदि तथा भक्ति आदि गुण, शंका आदिका त्याग यह सम्यक्त्वविनय जानो ।।११३||
टी०-पूर्वोक्त अर्थात् पूर्वाचार्योके द्वारा कहे गये, या इससे पहलेके गाथा सूत्र 'उवग्रहण दिदिकरणं वच्छल्ल पभावणा भणिदा' के द्वारा कहे गये उपवृंहण, स्थितिकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये गुण सम्यक्त्वविनय है । तथा अर्हन्त आदि विषयक भक्ति आदि गुण सम्यक्त्वविनय है और शंका आदि दोषोंका त्याग सम्यक्त्व विनय है।
शंका-उपवृंहण आदि और भक्ति आदि गुण बहुत हैं और वे गुण ही सम्यक्त्वकी विनय रूप है । इस लियें गाथामें 'सम्मतविणया' इस प्रकार बहुवचनका प्रयोग करना चाहिये ?
समाधान-विनय सामान्यकी अपेक्षा सम्यक्त्व विनय एक है अतः एक वचन पदका प्रयोग किया है। विनय पदके वाच्य बहुत होनेसे बहुपना संभव नहीं है क्योंकि 'वृक्षा वनम्' ऐसा प्रयोग होता है अर्थात् वृक्ष बहुत होनेसे 'वन' में बहुवचनका प्रयोग जैसे नहीं हुआ वैसे ही यहाँ भी जानना ॥११३॥
अब चारित्र विनयका कथन करते है
गा०-इन्द्रिय और कषायरूपसे आत्माकी परिणति न होना, और गुप्तियाँ और समितियां, यह संक्षेपसे चारित्र विनय ज्ञातव्य है ।।११४।।
१. णमादीया अ० । २. भत्तियादि गुणा अ० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org