________________
विजयोदया टीका
२३७
'अद्धाणसणं' अद्धाशब्दः कालसामान्यवचनोऽन्यत्रेह चतुर्थादिपण्मासपर्यन्तो गृह्यते । तत्र यदनशनं तदद्धानशनं । 'सव्वाणसणं चेदि' सर्वानशनं चेति । दुविधमणसणं दु' तु शब्दोऽवधारणार्थ द्विप्रकारमेवानशनं । सर्वशब्दः प्रकारकात्स्न्ये वर्तते । यथा सर्वमन्नं भक्ते । परित्यागोत्तरकालो जीवितस्य यः सर्वकालः तस्मिन्ननशनं अशनत्यागः सर्वानशनं । कदा तदुभयमित्यत्र कालविवेकमाह-'विहरंतस्स य' ग्रहणप्रतिसेवनकालयोवर्तमानस्य । 'अद्धाणसणं' अद्धानशनं । इतरं च इतरत सनिशनं । 'चरिमंते' चरिमान्ते । परिणामकालस्यान्ते ॥२१॥ अद्धानशनविकल्पं प्रतिपादयति
होइ चउथं छठ्ठट्ठमाइ छम्मासखवणपरियंतो।
अद्धाणसणविभागो एसो इच्छाणुपुवीए ॥२१२।। 'अद्धाणसणविभागो होइ' इति पदघटना । अद्धानशनविभागो भवति । 'चउत्थं छठ्ठट्ठमाई छम्मासखमणपरियंतो चतुर्थषष्ठाष्टमादिषण्मासक्षपणपर्यन्तः । ‘इच्छाणुपुवीए' आत्मेच्छा' क्रमेण ॥२१२॥ अवमोदरियं निरूपयितुकामः आहारप्रमाणं प्रायोवृत्त्या प्रवृत्तं दर्शयति
बत्तीसं किर कवला आहारो कुक्खिपूरणो होइ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं हवे कवला ॥२१३।।
अनशन तपके भेद गाथा द्वारा कहते है
गा०-अद्धानशन और सर्वानशन इस प्रकार अनशन दो ही प्रकारका कहा है। ग्रहण और प्रतिसेवनाकालमें वर्तमानके अद्धानशन होता है और मरण समय में सर्वानशन होता है ॥२११।।
टी०-अन्यत्र अद्धाशब्द कालसामान्यका वाचक है। किन्तु यहाँ अद्धानशनमें अद्धाशब्द चतुर्थ आदिसे लेकर छहमास पर्यन्त जितने भेद अनशनके होते हैं उन सबके लिए ग्रहण किया है। उन उपवासोंमें जो अनशन होता है वह अद्धानशन है । सर्वशब्द सब प्रकारोंमें आता है। जैसे सब प्रकारका अन्न खाता हूँ। संन्यास ग्रहण करनेके पश्चात् जबतक जीवन रहे उस सब कालमें जो भोजनका त्याग है वह सर्वानशन है। इस तरह अनशन दो ही प्रकारका है। ये दोनों कब होते हैं इसके लिए कालका भेद किया है। ग्रहण कालमें अर्थात् दीक्षा ग्रहणसे लेकर संन्यास धारण करनेसे पूर्वके कालमें तथा प्रतिसेवना काल अर्थात् दोषोंकी विशुद्धिके लिए अद्धानशन होता है और परिणाम कालके अन्तमें अर्थात् मरण समयमें सर्वानशन होता है ॥२११||
गा०-चतुर्थ षष्ठ आदिसे छह मासके उपवास पर्यन्त यह अद्धानशनके भेद होते हैं । ये मुनिगण अपनी इच्छाके अनुसार करते हैं ।।२१२।।
अवमौदर्यका निरूपण करनेकी इच्छासे प्रायः प्रचलित आहारका परिमाण बतलाते हैं_गा०-बत्तीस ग्रास प्रमाण आहार पुरुषके पेटको पूरा भरनेवाला होता है। स्त्रियोंके कुक्षिपूरक आहारका परिमाण अट्ठाइस ग्रास होता है ।।२१३।।
१. आत्मेच्छाव्रतेन-आ० मु०। २. आहारप्रवृत्ति दर्शयति आ० । आहारपरिमाणं प्रायो-मु० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org