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विजयोदया टीका
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च 'गत्वा ॥२२४॥ स्थानयोगनिरूपणा
साधारणं सवीचारं सणिरुद्धं तहेव वोसटें । . समपादमेगपादं गिद्धोलीणं च ठाणाणि ।।२२५।। 'साधारणं' प्रमृष्टस्तम्भादिकमुपाश्रित्य स्थानं । 'सवीचार' ससंक्रमं पूर्वावस्थिताद्देशाद्गत्वापि स्थापितस्थानः । 'सणिरुद्ध' निश्चलमवस्थानं । 'तहेव' तथैव । 'वोसटें' कायोत्सर्गः । 'समपाद” समौ पादौ कृत्वा स्थानं । 'एगपाद' एकेन पादेन अवस्थानं । गिद्धोलोणं गृद्धस्योर्ध्वगमनमिव बाहू प्रसार्यावस्थानं ॥२२५॥ आसनयोगनिरूपणा
समपलियंकणिसेज्जा समपदगोदोहिया य उक्कुडिया ।
मगरमुह हस्थिसुण्डी गोणिसेज्जद्धपलियङ्का ।।२२६॥ 'समपलियंकणिसेज्जा' सम्यक्पर्यङ्कनिषद्या। 'समपद' स्फिपिठस'मवसरणेनासनं । 'गोदोहिगा' गोदोहने आसनमिवासनं । 'उक्कुडिगा' ऊवं संकुचितमासनं । 'मगरमूह' मकरस्य मुखमिव कृत्वा पादाववस्थानं । 'हत्थिसुण्डी' हस्तिहस्तप्रसारणमिव एक पादं प्रायासनं । हस्तं प्रसार्येत्यपरे। 'गोणिसेज्ज अद्धपरियंक' गोनिषद्या गवापासनमिव अर्द्धपर्यवं ॥२२६।।
वीरासणं च दण्डायउढ ढसाई य लगडसाई य ।
उत्ताणो मच्छिय एगपाससाई य मडयसाई य ॥२२७॥ लिये जाना। 'गंतूण पडिआगमण'-जाकर लौट आना ये सब काय क्लेश तप है ।। २२४॥
स्थान योगका कथन करते हैं--
गा०-टी०--'साधारण'-चिकने स्तम्भ आदिका आश्रय लेकर खडे होना । सवीचार-पूर्व स्थानसे दूसरे स्थान पर जाकर कुछ काल तक खड़े रहना। 'सणिरुद्ध'-अपने स्थान पर ही निश्चल स्थित होना । 'वोसट्ट' -कायोत्सर्ग करना। समपाद---दोनों पैर बराबर करके खड़े होना । 'एगपाद'-एक ही पैर से खड़े होना । 'गिद्धोलीण'-- जैसे गिद्ध उड़ते समय अपने दोनों पंख फैलाता है उस तरह दोनों हाथ फैलाकर खड़े होना ।।२२५।।
आसन योगका कथन करते है--
गा-टी०-'समपलियंकणिसेज्जा'-सम्यक् पर्यंकासनसे बैठना। 'समपद'-जांघे और कटि भागको सम करके वैठना । 'गोदोहिगा' गौ दुहते समय जैसा आसन होता है वैसे आसनसे वैठना। 'उक्कुडिया'-ऊपरको संकुचित आसनसे बैठना अर्थात् दोनों पैरोंको जोड़ भूमिको न छूते हुए बैठना । 'मगरमुह'-मगरके मुखकी तरह पैर करके बैठना । 'हत्थिसुंडी-हाथीके सूंड फैलानेकी तरह एक पैर फैलाकर बैठना। दूसरों का कहना है कि हाथ फैलाकर बैठना हत्थिVडी है। 'गोणिसेज्ज' दोनों जंघाओंको संकोच कर गायकी तरह बैठना। और अर्धपर्यकासन । ये सब कायक्लेश के आसन हैं ।।२२६।।
१. कृत्वा अ० । २. समकरणेना-मु० ।
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