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विजयोदय टीका
अत्रोच्यते - सव्वं सावज्जजोगं पच्चक्खामीति वचनाद्धिसादिभेदमनुपादाय सामान्येन सर्वसावद्ययोगनिवृत्तिः सामायिकं । हिंसादिभेदेन सावद्ययोगविकल्पं कृत्वा ततो निवृत्तिः प्रतिक्रमणं ।
"मिच्छत्तपडिक्कमणं, तहेव असंजमपडिक्कमणं । कसासु पडिक्कमणं, जोगेसु अप्पसत्थेसु " ॥
[ मूलाचा० ७।१२० ]
इति वचनादिति केचित्परिहन्ति ।
इदं त्वन्याय्यं प्रतिविधान । योगशब्देन वीर्यपरिणाम उच्यते । स च वीर्यान्तरायक्षयोपशमजनितत्वात् क्षायोपशमिको भावस्ततो निवृत्तिरशुभकर्मादाननिमित्तयोगरूपेण अपरिणतिरात्मनः सामायिकं । मिथ्यात्व'मसंयमः कषायाश्च दर्शनचारित्रमोहोदयजा औदयिकाः । मिथ्यात्वं तत्त्वाश्रद्धानरूपं, असंयमो हि हिंसादिरूपः क्रोधादयस्तु परस्परतो मिथ्यात्वादसंयमाच्चानुभवसिद्ध वैलक्षण्यरूपाः । ये भिन्नहेतुस्वरूपास्ते नैक्यमापद्यन्ते यथा शालियवगोधूमादिधान्यं । भिन्न हेतुस्वरूपाश्च मिथ्यात्वा संयमकषायाः । तेभ्यो विरतिर्व्यावृत्तिः प्रतिक्रमणं । सावद्ययोगमात्रनिवृत्तिः सामायिकमिति भेदो महाननयोः । भेदमेवाश्रित्यामीषां परिणामानां चदुपच्चयगो बंधो इति सूत्रमवस्थितं । अन्यथा योगविकल्पत्वे मिथ्यात्वादीनां चतुःसंख्या न न्याय्या योगेन सह ।
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प्रत्याख्यानं नाम अनागतकालविषयां क्रियां न करिष्यामि इति संकल्पः । तच्च नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकाल भावविकल्पेन षड्विधं । अयोग्यं नाम नोच्चारयिष्यामीति चिन्ता नामप्रत्याख्यानं । आप्ताभासानां
समाधान - सर्व सावद्ययोगको त्यागता हूँ इस प्रकार हिंसा आदिका भेद न करके सामान्यसे सर्व सावद्ययोगसे निवृत्ति सामायिक है । और हिंसा आदिके भेदसे सावद्ययोगके भेद करके उससे निवृत्ति प्रतिक्रमण है । सूत्रमें कहा है- 'मिध्यात्व प्रतिक्रमण' असंयम प्रतिक्रमण, कषाय प्रतिक्रमण और अप्रशस्त योग प्रतिक्रमण होता है ।
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उक्त शंकाका कोई आचार्य ऐसा उत्तर देते हैं किन्तु वह उचित नहीं है । योग शब्दसे वीर्यपरिणाम कहा जाता है । वह वीर्यपरिणाम वीर्यान्तरायके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेके कारण क्षायोपशमिक भाव है । उससे निवृत्ति अर्थात् अशुभकर्मको लानेमें निमित्त योगरूपसे आत्माका परिणमन न करना सामायिक है । मिथ्यात्व, असंयम और कषाय दर्शनमोह और चारित्रमोहके उदयसे उत्पन्न होनेके कारण औदयिक हैं । मिथ्यात्व तत्त्वोंके अश्रद्धानरूप है । असंयम हिंसादिरूप है और क्रोधादि तो मिथ्यात्व और असंयमसे विलक्षण हैं यह अनुभवसिद्ध है । जिनका हेतु और स्वरूप भिन्न होता है वे एक नहीं हो सकते जैसे शालि, जौ, गेहूँ आदि धान्य । मिथ्यात्व, असंयम और कषायके हेतु और स्वरूप भिन्न-भिन्न हैं उनसे निवृत्ति प्रतिक्रमण है । और सावद्य योगमात्र निवृत्ति सामायिक है । अतः दोनोंमें महान् भेद है इन परिणामोंके भेदको ही लेकर 'चदुपच्चयगो बन्धो'-- बन्धके चार कारण है, यह सूत्र अवस्थित है । अन्यथा यदि मिथ्यात्व आदि योग भेद हों तो फिर योगके साथ चारकी संख्या नहीं बन सकती ।
आगामी काल में मैं यह काम नहीं करूँगा, इस प्रकारके संकल्पका नाम प्रत्याख्यान है । नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके भेदसे उसके छह भेद हैं। मैं अयोग्य नामका
१. त्वासंयमक - आ० मु० । २
पञ्चयाण बंधो-आ० मु० |
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