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भगवती आराधना रक्षदेवसहस्रसंपाद्यमानरक्षाविधानं, नर्तनव्यग्राद्भुतविग्रहाग्रेसरभूतं, प्रदक्षिणीकृतसुराचलं, आरूढसुरगिरिशिखरायमाणसिंहासनं, तद्देवकुमारपरंपरानीतक्षीरवारिधिजलभरितरत्नकलशकृताभिषेक, पौलोमीरचितबालानुरूपमण्डनं, गुणस्तवव्यापृतेंद्रवैतालिकसहस्र, सुराधिपरचितजन्मोत्सवनर्तनं, जन्माभिषेककल्याणं पश्यति तस्य पश्यतः ।
अभिनिष्क्रमणं वा जिनानामीदृक् तदिति वण्यंते । सर्व एव जिनाः समधिगतोदीरितजन्माभिषेककल्याणाः, शतमखशासनस्थसादरधनदोपनीयमानदिव्योचिताङ्गरागवसनभोजनवाहनालंकारसंपत्संदोहाः, मनोनकूलक्रीडासंपादनचतुरदेवकुमारपरिवाराः, केचित्पुरातनपुण्यपरिपाकोदयाचलोद्गतविराजमानारकसहस्रचक्ररविसहायेन अमेयभुजविक्रमेण वशीभूताशेषमागधप्रभासादिदेव विद्याधरभूमिपालसंहतयः, सुरकुमारीरूपयौवनविभ्रमापहसनचतुरानेकद्वात्रिंशद्दे वीसहस्राननारविंदविकासनोद्यताः; पाकशासनप्रहितनर्तकीनुत्तावलोकनविनोदाः, सादराकणितकिन्नरादिदेवगान्धर्वगीताः, कालमहाकालादिनवनिधिप्रभवः, प्रत्येकदेवसहस्रपरिपाल्यमानचक्रादिचतुर्दशरत्नानुयाताः, द्वात्रिंशत्सहस्रमुकुटवद्धशातकुम्भघटितमोलि तटमकरिकास्थितरत्नप्रदीपालीहुई नृत्य करती हैं। हजारों देवियाँ हाथोंमें अष्ट मंगल लिये हुए आगे गमन करती है। देवोंके द्वारपाल क्षुद्र देवगणोंको वहाँसे दूर कर देते हैं । हजारों आत्मरक्ष जातिके देव रक्षा करने में तत्पर रहते हैं। नाचने में मग्न अद्भुत शरीरधारी देव आगे रहते हैं। सब सुमेरुकी प्रदक्षिणा करते हैं । सुमेरुके शिखरके समान सिंहासन पर भगवान्को विराजमान करते हैं। देवकुमारोंकी परम्परासे लाये गये क्षीर समुद्रके जलसे भरे रत्नमयी कलशोंसे जिन भगवान्का अभिषेक करते हैं । इन्द्राणी बालकका उनके अनुरूप शृंगार करती है। सहस्रों इन्द्र वैतालिक भगवान्के गुणोंका स्तवन करते हैं । जन्मोत्सवके अवसर पर इन्द्र नृत्य करता है। ऐसे जन्माभिषेक कल्याणको जो देखता है उसका सम्यग्दर्शन अति निर्मल होता है ।
जिन भगवान्का अभिनिष्क्रमण इस प्रकारका होता है । उसका वर्णन करते हैं
सभी जिनदेवोंका जन्माभिषेक कल्याणक बड़ी विभूतिके साथ मनाया जाता है। इन्द्रकी आज्ञासे कुबेर उनके लिये दिव्य अंगराग, वस्त्र, भोजन, वाहन, अलंकार आदि संपत्ति प्रस्तुत करता है । मनके अनुकूल क्रीड़ा करने में चतुर देवकुमारोंका परिवार रहता है । उनमेंसे कोई-कोई जिनदेव पूर्वसंचित पुण्यकर्मके उदयरूपी उदयाचल पर प्रकट हुए. एक हजार आरोंसे युक्त चक्ररूपी सूर्यकी सहायतासे और अपने अपरिमित भुज पराक्रमसे समस्त मागध प्रभास आदि देव, विद्याधर
और राजाओंके समूहको अपने अधीन कर लेते हैं, देवांगनाओंके रूप, यौवन और विलासको तिरस्कृत करनेमें चतुर बत्तीस हजार पट्टरानियोंके मुखरूपी कमलोंको विकसित करने में तत्पर रहते हैं । इन्द्रके द्वारा भेजी गई नर्तकियोंके नृत्यका अवलोकन करते हुए मनोविनोद करते हैं। किन्नर आदि देवगन्धर्वोके गीतोंको बड़े आदरसे सुनते हैं। काल महाकाल आदि नौ निधियाँ उनके राजकोषमें उत्पन्न होती हैं । चक्ररत्न आदि चौदह रत्न होते हैं। प्रत्येक रत्नकी एक हजार देव रक्षा करते हैं । बत्तीस हजार मुकुट बद्ध राजाओंके स्वर्ण निर्मित मुकुटोंके ऊपरकी मकरिकामें लगे रत्नदीपोंकी पंक्तिके द्वारा उनके पादपीठ निरन्तर पूजे जाते हैं अर्थात् बत्तीस हजार राजा उन्हें नित्य नमस्कार करते हैं । देवकुमार भेटे ले लेकर उनकी सेवामें सदा उपस्थित होते हैं। इस
१ मौलित्रपुकटिका-अ० ।
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