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भगवती आराधना
तनूकृत्य छेदनेन, भेदनेनोत्पाटनेन, रोहणेन, कर्षणेन, दहनेन च क्लेशभाजनतामुपयातोऽस्मि ।
तथा कुन्थुपिपीलिकादित्रसो भूत्वा वेगप्रयायिरथचक्राक्रमणेन खरतुरगादिपरुषखुरसन्ताडनेन, जलप्रवाह प्रकर्षणेन, दावानलेन, द्रुमपाषाणादिपतनेन, मनुजचरणावमर्द्दनेन, बलवतां भक्षणेन च चिरं क्लिष्टोऽस्मि । तथा खरकरभबलीवर्दादिभावमापद्य गुरुतरभारारोपणेन, बन्धनेन, कर्कशतरकशादण्डमुशलादिताडनेनाहारनिरोधनेन, शीतोष्णवातादिसंपातेन, कर्णच्छेदनेन, दहनेन, नासिकावेधनेन विदारणेन, परश्वादिनिशितासिधारा प्रहारेण चिरमुपद्रुतोऽस्मि । तथा भग्नपादं कृशतया व्याध्यभिभवेन वा पतितं इतस्ततः परावर्त्यमानं, क्रूरतमव्याघ्र शृगालसारमेयादिभिर्भक्ष्यमाणं, काकगृध्रकङ्कादिभिः कवलीक्रियमाणं, तरलतरतारकाक्षियुगलं, कस्त्रातुमासीत् । ततो यतो गुरुतर भारोद्वहनजात क्वथितव्रणसमुद्भव कृमिकुलेन, काकादिभिश्चानारतमुपद्रुतोऽस्मि ।
तथा मनुजभवेऽपि करणवैकल्याद्दारिद्रद्यादसाध्यव्याध्युपनिपातात्, प्रियालाभादप्रिययोगात्परप्रेष्यकरणादपरपराभवात्, द्रविणार्जनाशया दुष्करकर्मादानमूलषट्कर्मोद्योगाच्च, विचित्रां विपदमुतोऽस्मि ।
तथैवामरभवेऽपि 'दूरमपसर लघु प्रयाहि, प्रभोः प्रस्थान वेला वर्तते, प्रयाणपटहं ताडय, ध्वजं धारय, हताशदेवीजनं पालय, तिष्ठ स्वामिनोऽभिलषितेन वाहनरूपेण, कि विस्मृतोऽस्य 'नल्पपुण्यपण्यशतमखस्य दासेरतां यत्तूष्णीं तिष्ठसि । पुरो न धावसीति देवमहत्तरपरुषतरभारतीशलाकानां श्रवणतोदनेन शतमुखान्तःतथा झाड़ी, बेल, वृक्ष आदिको छेदने, भेदने, उखाड़ने, खींचने और जलानेसे मैं क्लेशका पात्र बना हूँ ।
तथा कुंथु चींटी आदि त्रस पर्यायको धारण करके वेगसे जाते हुए रथके पहियेके आक्रमणसे, गधे घोड़े आदिके कठोर खुरके आघातसे, जलके प्रवाहके खिचावसे, जंगल की आगसे, वृक्ष, पत्थर आदिके गिरने से, मनुष्यके चरणोंसे रौंदे जानेसे और बलवानोंके द्वारा खाये जानेसे मैंने चिरकाल तक कष्ट भोगा है । तथा गधा ऊँट बैल आदिका शरीर धारण करके भारी बोझा लादनेसे, सवारी करनेसे, बाँधनेसे, अत्यन्त कठोर कोड़े, दण्डे, और मूसल आदिसे पीटनेसे, भोजन न देनेसे, शीत उष्ण वायु आदिके चलने से, कान छेदनेसे, जलानेसे, नाक छेदनेसे, परशु आदिसे काटने से, तीक्ष्ण तलवारकी धारके प्रहारसे मैंने चिरकाल उपद्रव सहे हैं । तथा पैर टूट जाने पर, कमजोर होनेसे अथवा रोगसे पीड़ित होनेसे गिर पड़ने पर इधर-उधर घूमने पर अतिक्रूर व्याघ्र, सियार, कुत्ते आदि खाये जाने पर, कौवे, गिद्ध, कंक आदि पक्षियोंके द्वारा अपना आहार बनाये जाने पर, आखोंसे आँसू बहाते हुए भी कौन मेरी रक्षा करता था । अतः भारी बोझा लादनेसे उत्पन्न हुए घावों में पैदा हुए कीटोंसे और उनको खाने वाले कौओंसे मैं निरन्तर सताया गया हूँ। तथा मनुष्यभवमें भी इन्द्रियों की कमी होनेसे, गरीबीसे, असाध्य रोगके होनेसे, इष्ट वस्तुके न मिलने से, अप्रियके संसर्गसे दूसरे की चाकरी करनेसे, दूसरेके द्वारा तिरस्कृत होनेसे, धन कमानेकी इच्छासे दुष्कर कर्मबन्धके कारण षट्कर्मों को करनेसे अनेक प्रकारकी विपत्तियोंको मैंने भोगा है । उसी प्रकार देवपर्याय में भो-दूर हटो, जल्दी चलो, स्वामीके प्रस्थान करनेका समय है । प्रस्थान करनेके नगारे बजाओ, ध्वजा लो, निराश देवियोंको देखभाल करो, स्वामीको इष्ट वाहनका रूप धारण करके खड़े रहो, क्या अति पुण्यशाली इन्द्रकी दासताको भूल गये जो चुपचाप खड़े हो, आगे नहीं दौड़ते । इस
१. स्यल्प - अ० आ० ।
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