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भगवती आराधना
संवासवंदणीपाददाण अणुपालणाहि परिहारि । अणुपरिहारी भुंजवि निवसमाणो वंदणसंवासाला वर्णाहि ॥ कपट्टिदं भुजदि अणुपरिहारि पि गहणासंवासठाणाहि तु । णिविसमाणो णिश्विसमाणं संवासदो ण अणेण ॥ कपट्ठिदो भुजदि संवासणुपासण गिराहि । कपट्ठिदोणुकपीव वंदिदा वेति धम्मलाहोत्ति ॥ गारत्थि अण्णतित्थी अण्णतित्थो हि निव्विसंतो । 'पत्तमणीको सवो वि विषयं अष्णोष्णं गणं वादंति ॥ दट्ठूण व सोवण व जत्थ हु साधम्मिग्गो वसदि खेत्तो । तं ण पविसंति खेत्तं कुदो पुणो वंदनादीगं ॥ एवं कल्पोक्तः क्रमः सर्वोऽनुगन्तव्यः ।
मौनाभिग्रहरतास्तिस्रो भाषा मुक्त्वा प्रष्टव्याहृतिमनुज्ञाकरणीं प्रश्ने प्रवृत्तां च मार्गस्य शंकितस्य वा योग्यायोग्यत्वेन शय्याधरगृहस्य, वसतिस्वामिनो वा प्रश्नः । ग्रामाद्वहिः श्मशानं, शून्यगृहं, देवकुलं, गुहां वा आगन्तुकगृहं तरुकोटरं वा अनुज्ञापयन्त्येकवारं । कस्त्वं कुतो वागच्छसि, गमिष्यसि वा कं देशं, कियच्चिरमंत्र वसति कतिजना इति प्रश्ने श्रमणोऽहमित्येकमेव प्रतिबचनं प्रयच्छन्ति । इतरत्र तूष्णींभावः । इतोऽवकाशादपसर्पणं कुरु, स्थानमिदं प्रयच्छ, परिपालय त्वमित्येवमादिको वाग्व्यापारो यत्र तत्र न वसन्ति । गोचर्या यद्यपर्याप्ता तृतीययामे गव्यूतिद्वयं यान्ति । वर्षमहावातादिभिर्यदि व्याघातो गमनस्य अतीतगमनकालास्तत्र तिष्ठन्ति । व्याघ्रादिव्यालागमने यदि ते भद्रा युगमात्रं अपसर्पन्ति । दुष्टाश्चेत्पदमात्रमपि न चलन्ति । नेत्रयोसहायता लेना ), निवास, वन्दना, वार्तालाप आदि व्यवहार करते हैं । अनुपरिहार संयमी परिहारसंयम के साथ संवास, वन्दना, दान, अनुपालना आदिसे व्यवहार करते हैं । कल्पस्थित भी अनुपरिहारसंयमीके साथ व्यवहार करता है । वन्दना करनेपर धर्मलाभ कहता है । एक दूसरेको देखकर सब परस्पर में विनय करते हैं । जहाँ अधार्मिकजन बसते है वहाँ वे प्रवेश नहीं करते । इस प्रकार सब कल्पोक्त क्रम जानना चाहिए 1
ये तीन भाषाओंको छोड़ सदा मोनसे रहते हैं। वे तीन भाषाएँ हैं- पूछनेपर उत्तर देना, माँगना और स्वयं पूछना । मार्ग में शंका होनेपर मार्ग पूछना पड़ता है, ये उपकरणादि योग्य हैं या अयोग्य, यह पूछना होता है । शय्याधर, जो वसतिकासे सम्बद्ध होता है उसका घर पूछना होता है, वसतिका स्वामी कौन है यह पूछना होता है । गाँवसे बाहर स्मशान, शून्यघर, देवालय, गुफा, आनेवालोंके लिए बना घर अथवा वृक्षके खोलमें निवास करते समय 'हमें अनुज्ञा दें' ऐसा एकबार कहना होता है । 'तुम कौन हो, कहाँसे आते हो, कहाँ जाओगे, यहाँ कितने समय तक ठहरोगे, तुम कितने जन हो' इस प्रकारके प्रश्न होनेपर 'हम श्रमण हैं' यह एक ही उत्तर देते हैं । शेषमें चुप रहते हैं । 'इस स्थान से चले जाओ, यह स्थान हमें दो, जरा घर देखना इत्यादि वचन व्यवहार जहाँ होता है वहाँ नहीं ठहरते । गोचरी यदि नहीं मिलतो तो तीसरे पहर दो गव्यूति जाते हैं । यदि वर्षा, आँधी आदिसे गमनमें बाधा होती है तो जहाँतक गमन किया है वहीं ठहर जाते हैं । व्याघ्र आदि पशुओंके आनेपर यदि वे भद्र होते हैं तो मुनि चार हाथ चलते हैं और
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१. पत्तसुणीको - आ० मु० | ४. प्रश्ने प्रवर्तते वा मा-आ० ।
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२. पसंसन्ति-आ० मु० 1 ३. कुदो हु गो-आ० मु० । ५. इन गाथाओंका यथार्थ भाव स्पस्ट नहीं हो सका है-अनुवादक ।
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