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भगवती आराधना 'बारसविहम्मि य' द्वादशप्रकारे । 'तवे' तपसि । 'सम्भंतरबाहिरे' सहाभ्यन्तरदाह्याभ्यां वर्तते इति साभ्यंतरबाह्यं । बाह्यमभ्यंतरं वा तपो मुक्त्वा किमन्यत्तपो नाम यत्ताभ्यां सह वर्तते इत्युच्यते ? तपःसामान्य विशेषैः सह वर्तते इत्यच्यते । अजाद्यतत्वात अभ्यहितत्वाच्च अभ्यन्त रशब्दस्य पू बाह्यशब्दात । 'कुसलदिठू' संसारः, संसारकारणं, बंधो, वंधकारणं, मोक्षस्तदुपायः इत्यत्र वस्तुनि ये कुशलाः सर्वविदस्तैरुपदिष्टे । 'सज्झायसम' स्वाध्यायेन सदशं । 'तवोकम्म' तपःक्रिया। 'ण वि अत्थि' नैवास्ति । 'ण विय' नैव । 'होहिदि' भविष्यति । नाप्यासीदिति कालत्रयेऽपि स्वाध्यायसदृशस्यान्यस्य तपसोऽभावः कथ्यते । अत्र चोद्यते-स्वाध्यायोऽपि तपो अनशनाद्यपि तपो बुद्धरेविशेषात कर्मतपनसामर्थ्यस्याविशेषात् । किमुच्यते स्वाध्यायसदृशं तपो नेति ? कर्मनिर्जराहेतुत्वातिशयापेक्षया सदृशमन्यत्तपो नेवास्तीत्यभिप्रायः । तपो नाम किमात्मपरिणामो भवेत् न वा? आत्मपरिणामत्वे कथं कस्यचिद्वाह्यता? अनात्मपरिणामत्वेन . निर्जरां कुर्यात् घटादिवदित्यत्रोच्यते-आत्मपरिणाम एव तपः । कथं तहि बाह्यता ? बाह्याः सद्धर्ममार्गाद्ये जनाः तैरप्यवगम्यत्वात् बाह्यमित्युच्यतेऽनशनादि बार्वािचरणात् । सन्मार्गज्ञा अभ्यन्तराः । तदवगम्यत्वा'तैराचरितत्वाद्वा बाह्याभ्यन्तरमिति सूरेरभिप्रायः ।।
गा०-सर्वज्ञके द्वारा उपदिष्ट अभ्यन्तर और बाह्यभेद सहित वारह प्रकारके तपमें स्वाध्यायके समान तपक्रिया नहीं है और न होगी ही ।। १०६ ।।
___टी०-शंका-बाह्य और अभ्यंतर तपको छोड़कर अन्य तप क्या है जो बाह्य अभ्यन्तर सहित बारह प्रकारका तप कहते हो ?
समाधान-सामान्य तप विशेषोंके साथ रहता है यह कहनेका अभिप्राय है। यद्यपि बाह्य शब्दमें अल्प स्वर हैं फिर भी अभ्यन्तर शब्दके आदिमें अच् होनेसे तथा पूज्य होनेसे अभ्यन्तर शब्दको प्रथम स्थान दिया है। संसार और संसारके कारण, बन्ध और बन्धके कारण तथा मोक्ष और उसके उपाय इन वस्तुओंमें जो कुशल सर्वज्ञ हैं उनके द्वारा उपदिष्ट तपोंमें स्वाध्यायके समान तप न है, न होगा और न था, इस प्रकार तीनों कालोंमें स्वाध्यायके समान अन्य तपका अभाव कहा है।
शंका-- स्वाध्याय भी तप है और अनशन आदि भी तप है। दोनोंमें ही कर्मको तपनेकी शक्ति समान है । फिर कैसे कहते हैं कि स्वाध्यायके समान तप नहीं है ?
समाधान-कर्मोकी निर्जरामें हेतु जितना स्वाध्याय है उतना अन्य तप नहीं है इस अपेक्षासे उक्त कथन किया है। ।
शंका-तप, क्या आत्माका परिणाम है अथवा नहीं है ? यदि आत्माका परिणाम तप है तो वह कैसे हुआ ? यदि तप आत्माका परिणाम नहीं है तो वह कर्मोकी निर्जरा नहीं कर सकता जैसे घट ।
__ समाधान-आत्माका परिणाम ही तप है। तव आप कहेंगे कि वह बाह्य कैसे है ? समीचीन धर्ममार्गसे जो लोग बाह्य हैं वे भी उन्हें जानते हैं इसलिए अनशन आदिको बाह्य तप कहा है, क्योंकि बाह्य लोग भी उन्हें करते हैं। जो सन्मार्गको जानते हैं वे अभ्यन्तर हैं। उनके द्वारा ज्ञात होनेसे अथवा उनके द्वारा पालन किये जानेसे अभ्यन्तर कहे जाते हैं। इस प्रकार तप
१. त्वात् घटादिवत्त-आ० मु० ।
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