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विजयोदया टीका
'प्सविचारभत्तपञ्चक्खाणस्स' इति सविचारभक्तप्रत्याख्यानस्य । 'इणमो' अयं । 'उवक्कमो व्याख्यानप्रारंभः । 'होदि' भवति । 'तत्थ य' तत्र च भक्तप्रत्याख्याने। 'सुत्तपदाई' सूत्रपदानि । सूतेऽथ सूचयतीति वा सूत्रं । सूत्राणि च तानि पदानि च सूत्रपदानि । 'चत्तालं'चत्वारिंशत् । 'होति' भवन्ति । 'णेयाइ" ज्ञातव्यानि ॥६५॥ तानि सूत्रपदानि गाथाचतुष्टयनिबद्धानि
अरिहे लिंगे सिक्खा विणय समाधी य अणियदविहारे ।
परिणामोवधिजहणा सिदी य तह भावणाओ य ॥६६।। 'अरिहे' अर्हः योग्यः । सविचारभक्तप्रत्याख्यानस्यायं योग्योऽयं नेति प्रथमोऽधिकारः कर्तृव्यापारः । लिंगादयः कर्तृपुरःसरा भवंतीति प्रागेव लिंगशिक्षादिभ्यो योग्यकर्तृनिर्देशः सूत्रे कृतः अरिह इति । शिक्षादिक्रियाया भक्तप्रत्याख्यानक्रियांगभूताया योग्यपरिकरमादर्शयितुं लिंगोपादानं कृतम् । कृतपरिकरो हि कर्ता क्रियासाधनायोद्योगं करोति लोके । तथा हि घटादिकरणे प्रवर्तमाना दृढबद्धकक्षाः कुलाला दृश्यते । ज्ञानमंतरेण न विनयादयः कर्तुं शक्यन्ते इति तेभ्यः प्राङ् निर्देशमर्हति शिक्षा । यथावसरमितरक्रममादर्शयिष्यामः । लिंगशब्दश्चिह्नवाची। तथाहि वक्ष्यति । 'चिह्न करणं' इति । सिक्खा' शिक्षा श्रुतस्य अध्ययनमिह शिक्षाशब्देनोच्यते। तथा च वक्ष्यति-'जिणवयणं कलुसहरं अहो य रत्ती य पढिदवमिति'। विनयः मर्यादा । तथा हि-ज्ञानादिभावनाव्यवस्था हि ज्ञानादिविनयतया वक्ष्यते । समेकीभावे वर्तते तथा च प्रयोग:-संगतं
टी०–सविचार भक्त प्रत्याख्यानका व्याख्यान प्रारम्भ होता है उसमें चालीस सूत्रपद हैं ॥६५॥
उन सूत्रपदोंको चार गाथाओंसे कहते हैं
गा०–अर्ह अर्थात् योग्य, लिंग अर्थात् चिह्न, शिक्षा अर्थात् शास्त्राध्ययन विनय और मनका एकाग्र करना, अनियत क्षेत्रमें विहार, परिणाम, परिग्रह त्याग और शुभ परिणामोंकी श्रेणिपर आरोहण तथा अभ्यास ॥६६॥
टी०-अर्हका अर्थ योग्य है । सविचार भक्त प्रत्याख्यानके यह योग्य हैं और यह योग्य नहीं है यह प्रथम अधिकार है जो कर्ताके व्यापारसे सम्बद्ध है। लिंग आदि कर्ताके होनेपर ही होते हैं इसलिये लिंग शिक्षा आदिसे पहले गाथामें 'अरिह' से योग्य कर्ताका निर्देश किया है। भवत प्रत्याख्यान क्रियाके अंगभूत शिक्षा आदि क्रियाके योग्य परिकर दिखलानेके लिये लिंगका ग्रहण किया है। क्योंकि साधन सामग्री जुटा लेनेपर ही कर्ता लोकमें क्रियाकी साधनाके लिये उद्योग करता है । घट आदि बनानेमें लगे कुम्भकार साधन सामग्री कर लेनेपर ही कमर बाँधकर तैयार देखे जाते हैं। ज्ञानके बिना विनय आदि नहीं किये जा सकते, इसलिये उनसे पहले शिक्षाका निर्देश योग्य है । अन्य क्रम अवसरके अनुसार कहेंगे ।
. लिंग शब्द चिह्नवाची है। आगे कहेंगे 'चिह्न करणं' । यहाँ शिक्षा शब्दसे श्रुतका अध्ययन कहा है। आगे कहेंगे-'जिन वचन कालिमाको दूर करता है उसे रात दिन पढ़ना चाहिये। विनयका अर्थ मर्यादा है। आगे ज्ञानादि भावनाकी व्यवस्था ज्ञानादिकी विनयके रूपमें कहेंगे ।
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