________________
विजयोदया टीका
चक्खुं व दुब्बलं जस्स होज्ज सोदं व दुब्बलं जस्स || जंघाबलपरिहीणो जो ण समत्थों विहरिदुं वा ॥ ७२ ॥
'खु' व' चक्षुर्वा । चष्टेऽर्थान्दर्शयतीति चक्षुः । 'दुब्बलं' दुर्बलं अल्पशक्तिकं सूक्ष्मवस्तुदर्शनाक्षमं । 'जस्स' यस्य । 'होज्ज' भवेत् । 'सोदं' व श्रोत्रं वा श्रूयते शब्द उपलभ्यते येन तत् श्रोत्रम् | 'दुब्बलं' शब्दोपलब्धिजननसामर्थ्यविकलं । सोप्यर्हति । 'जंधा बलपरिहीणों' 'जो' यः । 'ण समत्थो' न शक्तो । 'विहरिदु वा' गंतु वा सोप्यर्हति ॥ ७२ ॥ |
दारिसंमि आगाढकारणे
जादे ||
अम्मि चावि अरिsो भत्तपइण्णाए होदि विरदो अविरदो वा ॥ ७३ ॥
'अण्णंमि चावि' अन्यस्मिन्नपि उक्तादस्मात् । 'आगाढकरणे' आगाढे कारणे 'जादे' जाते । 'एदारिसम्मि' उक्तकारणसदृशे । 'भत्तपदिण्णाए' अरिहो होदि विरदो अविरदो वा इति पदघटना । भक्त प्रत्याख्यानस्यार्हो भवति विरतः अविरतो वा ॥७३॥
अनर्ह सूचनायोत्तरगाथा
१११
उस्सरह जस्स चिरमवि सुहेण सामण्णमणदिचारं वा ॥
णिज्जावया य सुलहा दुब्भिक्खभयं च जदि णत्थि ||७४ ||
'उस्सरदि' नितरां प्रवर्तते । 'जस्स' यस्य । 'चिरमवि' चिरकालमपि । कि 'सामण्णं' चारित्रं । 'सुहेण' अक्लेशेन । 'अणविचारं वा' निरतिचारं । चारित्रविनाशभयादयं अतीतेषु कारणेषु सत्सु प्रत्याख्यानायोद्योगं
गा० - जिसकी चक्षु दुर्बल हो अथवा जिसके श्रोत्र दुर्बल हों । जो जंघाबलसे हीन हो (वा) अथवा विहार करनेमें समर्थ न हो ॥७२॥
Jain Education International
टी०—‘चष्टे' अर्थोको जो दिखलाती है वह चक्षु है । 'श्रूयते' जिसके द्वारा शब्दको जाना जाता है वह श्रोत्र है । जिसकी चक्षु अल्पशक्तिवाली हो, सूक्ष्म वस्तुको न देख सकती हो । जिसकी कर्णेन्द्रिय दुर्बल हो, शब्दका ज्ञान करानेमें आशक्त हो, जिसमें जंघाबल न हो, जो विहार करनेमें अशक्त हो, वे सब भक्तप्रत्याख्यानके योग्य हैं ॥ ७२ ॥
गा०—उक्तकारणके समान अन्य भी प्रबल कारण उपस्थित होनेपर विरत अथवा अविरत भक्तप्रत्याख्यानके योग्य होता है ||७३ ||
टी०—उक्त कारणोंके समान अन्य भी ऐसे कारण हों तो मुनि हो या श्रावक हो वह भक्तप्रत्याख्यानके योग्य होता है ॥ ७३ ॥
जो भक्तप्रत्याख्यानके अयोग्य हैं उन्हें आगेकी गाथासे कहते हैं—
गा० - जिसका चारित्र चिरकाल भी विना किसी क्लेशके अतिचार रहित अच्छी तरह पालित हो रहा है । अथवा समाधिमरण कराने में सहायक निर्यापक (सुलहा ) सुलभ हैं । (च) और (जदि) यदि दुर्भिक्षका भय नहीं है ||७४||
टी० - पहले जो भक्तप्रत्याख्यान करनेके कारण कहे हैं उनके रहते हुए यह चारित्र विनाशके भयसे भक्तप्रत्याख्यानके लिए उद्योग करता है । किन्तु यदि चारित्र विना क्लेशके निरतिचार
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org