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भगवती आराधना 'अप्पडिलिहणं' वसनसहितलिंगधारिणो हि वस्त्रखंडादिकं शोधनीयं महत् । इतरस्य पिच्छादिमात्र ।
'परिकम्मविवज्जणा चेव' याचनसीवनशोषणप्रक्षालनादिरनेको हि व्यापारः स्वाध्यायध्यानविघ्नकारी अचेलस्य तन्न तथेति परिकर्मविर्जनं ।
'गदभयत्तं' भयरहितता। भयव्याकुलितचित्तस्य न हि रत्नत्रयघटनायामुद्योगो भवति । सवसनो यतिर्वस्त्रेषु यूकालिक्षादिसम्मूर्छनजजोवपरिहारं न विधातुं अर्हः ।' अचेलस्तु तं परिहरतीत्यत्ह- 'संसज्जणं परिहारो' इति ।
'परिसहअधिवासणा चेव'। शीतोष्णदंशमशकादिपरीषहजयो युज्यते नग्नस्य । वसनाच्छादनवतो न शीतादिबाधा येन तत्सहनपरीषहजयः स्यात् । पूर्वोपात्तकर्मनिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहाः इति वचनानिर्जराथिभिः परिषोढव्याः परीषहाः ॥८२॥
विस्सासकरं रूवं अणादरो विसयदेहसुक्खेसु ।
सव्वत्थ अप्पवसदा परिसह अधिवासणा चेव ।।८।। 'विस्सासकरं रूवं' विश्वासकारि जनानां रूपं अचेलतात्मकं । एवं असंगा नैतेऽन्यदगह्णन्ति नापि परोपघातकारि शस्त्रग्रहणं प्रच्छन्नमात्रं संभाव्यते । विरूपेषु चामीषु नास्मदीयाः स्त्रियो रागमनुबघ्नंतीति विश्वासः ॥
टी०-लिंग ग्रहणका एक गुण परिग्रहका त्याग है। दूसरा गुण लाघव है क्योंकि परिग्रहवान ऐसा होता है मानो छाती पर पहाड़ रखा है। कैसे अन्य चौर आदिसे इस परिग्रहकी रक्षा करूं इस प्रकार चित्तसे बड़े भारी खेदके चले जानेसे लाघव होता है। जो वस्त्र सहित मुनि लिंग धारण करते है उन्हें वस्त्रों आदिका शोधन करना पड़ता है किन्तु वस्त्र रहित साधुको तो केवल पीछी आदिका ही शोधन करना होता है अतः अप्रतिलेखना भी एक गुण है । वस्त्रधारीको मागना, सीना, धोना, सुखाना आदि अनेक काम करना होते हैं जिनसे स्वाध्याय और ध्यानमें विघ्न होता है। किन्तु वस्त्र रहित साधके ये सब नहीं होता अतः परिकर्मका न होना भी एक गणे है। जिसका चित्त भयसे व्याकुल रहता है वह रत्नत्रयके साधनमें उद्योग नहीं करता। अतः परिग्रहके त्यागसे भय नहीं रहता । तथा वस्त्र सहित साधु वस्त्रोंमें जूं लीख आदि सम्मूर्छन जीवोंका बचाव नहीं कर सकता। किन्तु वस्त्र रहित साघु इनसे बचा रहता है अतः संसञ्जण परिहार भी एक गुण है । तथा नग्न मुनि शीत, उष्ण, डासमच्छर आदि की परीषहको जीतता है। जो वस्त्र ओढ़े हैं उसे शीतादिकी बाधा नहीं होती। तब उसको सहना रूप परीषहजय कैसे सभव है ? तत्त्वार्थ सूत्रमें कहा है कि पूर्वग्रहीत कर्मोंकी निर्जराके लिये परीषहोंको सहना चाहिये ॥८२॥
___ गा०-वस्त्र रहित रूप जनतामें विश्वास पैदा करने वाला होता है विषयसे होने वाले शारीरिक सुखमें अनादर भाव होता है । सर्वत्र स्वाधीनता रहती हैं और परीषहको सहना होता है ।।८३॥
१. अर्हति आ० गु० ।
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