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विजयोदया टीका बालबालं गदं संखेज्जा वा इत्यनया।
सप्तदशमरणविकल्पेषु पंचमरणान्यत्रोच्यते इति प्रतिज्ञातं । तत्र यत्पंडितमरणं तत्प्रायोपगमनमरणमिगिनीमरणं भक्तप्रत्याख्यानमिति त्रिविकल्पं सूचितं । तत्र भक्तप्रत्याख्यानं प्राग्वर्णनीयमिति दर्शयति सूत्रकारः
स्वयमेव सम्बन्धमुत्तरप्रबंधस्य
पुव्वं ता वण्णेसिं भत्तपइण्णं पसत्थमरणेसु ।।
उस्सण्णं सा चेव हुसेसाणं वण्णणा पच्छा ।।६३।। 'पुग्वं' पूर्व प्रथमं तावत् । 'वणेसि' वर्णयिष्यामि । 'भत्तपइण्णं' भक्तप्रत्याख्यानम् । 'पसत्थमरणेसु' प्रशस्तमरणेषु व्याख्येयेषु निर्धारणलक्षणा चेयं सप्तमी । यथा-कृष्णा गोषु संपन्नक्षीरतमेति समुदायादेकदेशस्य पृथक्करणं निर्धारणं । प्रशस्तमरणसमुदायात व्यवयविकात् भक्तप्रत्याख्यानं पृथग्व्यवस्थाप्यते । पूर्वव्याख्येयत्वेन एतत्कालप्रयोग्यत्वेन गुणेनेति मन्यते। उस्सण्णं नितरां बाहल्येन यावदित्यर्थः । मरणं सा चैव भक्तप्रत्या- . ख्यानमृतिरेव । साध्याहारत्वात्सर्वसूत्रपदानां । एवंह काले इति वाक्यशेषः कार्यः ।
___ संहननविशेषसमन्वितानां इतरमरणद्वयं । न च संहननविशेषाः । वज्रऋषभनाराचादयः अद्यत्वेऽमुष्मिक्षेत्र संति गणिनां । 'सेसाणं' शेषयोः प्रायोपगमनस्य इंगिनीमरणस्य च । वण्णणा कथनं । 'पच्छा' इति शेषः ।
गा०-बाल-बाल मरणसे मरनेपर भव्य जीवके संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त भव शेष होते हैं । अभव्यके अनन्तानन्त भव होते हैं ।।६२।।
टी०-इस गाथाके साथ बाल-बालमरणका कथन समाप्त हुआ। मरणके सतरह भेदोंमेंसे यहाँ पांच मरणका कथन करते हैं ऐसी प्रतिज्ञाकी थी । उनमेंसे जो पंडित मरण है उसके प्रायोपगमन मरण, इंगिनी मरण और भक्त प्रत्याख्यान ये तीन भेद सूचित किये थे। उनमें से प्रथम भक्त प्रत्याख्यानका वर्णन करनेकी सूचना ग्रन्थकार आगेकी गाथासे स्वयं करते हैं
गा०-प्रशस्त मरणोंमें पहले भक्त प्रत्याख्यानको कहूँगा। क्योंकि वह भक्त प्रत्याख्यान ही बहुतायतसे प्रचलित है । शेष मरणोंका वर्णन पीछे करेंगे ॥६३।।
. टी०-जिनका यहाँ व्याख्यान किया जाना है उन प्रशस्त मरणोंमेंसे भक्त प्रत्याख्यानको पहले कहूँगा । यहाँ यह सप्तमी विभक्ति निर्धारण करनेके अर्थमें है, जैसे गौओंमें काली गाय बहुत अधिक दूध देती है। समदायसे उसके एक देशको पथक करनेको निर्धारण कहते हैं। तीन भेद वाले प्रशस्त मरणके समदायसे भक्त प्रत्याख्यानको पथक करते हैं। इस कालमें भक्त प्रल ही पालन करनेके योग्य है इस गुणके कारण उसका प्रथम कथन करना योग्य है। समस्त सूत्रपद अध्याहार सहित होते हैं इसलिये इस कालमें भक्त प्रत्याख्यान मरण ही 'उस्सण्ण' बाहुल्यसे प्रवर्तित है। शेष दो मरण विशेष सहननके धारकोंके होते है। और आजके समयमें गणियोंके वज्रऋषभनाराच आदि सँहनन विशेष इस क्षेत्रमें नहीं होते। इसीसे शेष प्रायोपगमन और इंगिनीमरणका कथन पीछे करेंगे।
शंका-यदि आजके मनुष्योंमें उन मरणोंको करनेकी शक्ति नहीं है तो उनका कथन क्यों करते हैं ?
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