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भगवती आराधना यदि ते वर्तयितुं इदानींतनानामसामयं किं तदुपदेशेनेति चेत् तत्स्वरूपपरिज्ञानात्सम्यग्ज्ञानं । तच्च मुमुक्षूणामुपयोग्येवेति मन्यते ॥६३॥ कतिविकल्पं भक्तप्रत्याख्यानमित्यारेकायामाह
दुविहं तु भत्तपच्चक्खाणं सविचारमध अविचारं ।।
सविचारमणागाढे मरणे सपरक्कमस्स हवे ॥६४।। 'दुविधं तु भत्तपच्चक्खाणं' द्विविधमेव भक्तप्रत्याख्यानं । 'सविचारमध अविचारं' इति । विचरणं नानागमनं विचारः । विचारेण वर्तते इति सविचारं । एतदुक्तं भवति । वक्ष्यमाणाहलिंगादिविकल्पेन सहितं भक्तप्रत्याख्यानं इति । अविचारं वक्ष्यमाणा दिनानाप्रकाररहितं । भवतु द्विविधं । सविचारभक्तप्रत्याख्यानं कस्य भवति इत्यस्योत्तरं । सविचारं भक्तप्रत्याख्यानं 'अणागाढे' सहसा अनुपस्थिते मरणे चिरकालभाविनि मरणे इति यावत । 'सपरक्कमस्स' सह पराक्रमेण वर्तते इति सपराक्रमस्तस्य हवे भवेत । पराक्रमः उत्साहः एतेनैव सहसोपस्थिते मरणे पराक्रमरहितस्य अविचारभक्तप्रत्याख्यानं भवतीति लभ्यते 'यतो' विचारभक्तप्रत्याख्यानं अस्य अस्मिन्काले इति सूत्रे नोक्तं ॥६४॥ तयोः कस्य भक्तप्रत्याख्यानस्य अनेन शास्त्रण निरूपणेत्याशंकायां आह
सविचारभत्तपच्चक्खाणस्सिणमो उवक्कमो होइ ।
तत्थ य सुत्तपदाइं चत्तालं होंति णेयाइं ॥६५॥ समाधान-उनके स्वरूपको जाननेसे सम्यग्ज्ञान होता है और वह मुमुक्षुओंके लिए उपयोगी ही है ॥६३॥
भक्त प्रत्याख्यानके भेद कहते हैं
गा--भक्त प्रत्याख्यान दो प्रकारका ही है। सविचार और अविचार | सविचार भक्त प्रत्याख्यान सहसा मरणके उपस्थित न होनेपर पराक्रम अर्थात् साहस और बलसे युक्त साधुके होता है ॥६४।।
टी०-भक्त प्रत्याख्यान मरणके दो भेद हैं सविचार और अविचार। विचरण या नाना गमनको विचार कहते हैं और विचारसे सहितको सविचार कहते हैं। इसका यह अभिप्राय है कि आगे कहे जाने वाले अर्हलिंग आदि भेद सहित भक्त प्रत्याख्यान सविचार है और उनसे रहित अविचार है । सविचारं प्रत्याख्यान किसके होता है ? तो कहते हैं कि यदि मरण सहसा उपस्थित न हो, चिरकाल भावी हो तो पराक्रमसे उत्साहसे सहितके होता है। इसीसे वह भी प्राप्त होता है कि सहसा मरण उपस्थित होनेपर पराक्रमसे रहितके अविचार भक्त प्रत्याख्यान होता है। गाथामें अविचार भक्त प्रत्याख्यान इस कालमें इसके होता है, ऐसा नहीं कहा है ॥६४।।
उन दोनोंमेंसे किस भक्त प्रत्याख्यानका इस शास्त्रके द्वारा कथन किया जायेगा ? इस शंका का उत्तर देते हैं
गा-सविचार भक्त प्रत्याख्यानका यह उपक्रम अर्थात् प्रारम्भ होता है । और उस भक्त प्रत्याख्यानमें सूत्र और पद चालीस जानने योग्य हैं ।।६५।।
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