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विजयोदय टीका
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कृतपरिकरो राजपुत्रो व्यधनादिकासु क्रियासु उपगतकौशल: क्रियां प्रहरणादिकां संपाद्य यथाफलं प्राप्नोति इति एतदुत्तरगाथयाचष्टे जोगाभाविद इत्यनया
जोगाभावदकरणो सत्तू जेदूण जुद्ध रंगम्मि |
जह सो कुमारमल्लो रज्जवडायं बला हरदि ||२२||
जोगाभाविदकरणो परिकर्मणा असकृत्प्रवर्तितव्यधनताडनप्रहरणादिक्रिय: । आभावित इत्यत्राङ् भृशार्थे प्रयुक्तः । तथा च प्रयोगः - आधूमितं भृशं धूमेन परिपूर्णमित्यर्थः । ' सत्तू' शत्रून् । 'जेदूण' जित्वा । 'जुद्ध रंगम्मि' युद्धार्थ संस्कृतो देशो युद्धरंगमित्युच्यते तत्र । 'जह' यथा । 'सो' सः भावितात्मा । 'कुमारमल्लो' प्राणिनां कालकृतोऽवस्थाविशेषो द्वितीयः कुमारत्वं नाम । तद्योगाद्राजपुत्रः कुमारः स एव मल्लः । 'रज्जपडागं राज्यध्वजं । 'बला' बलात्कारेण । हरदि' हरति गृह्णाति ॥२२॥
दाष्टन्ति के योजयितुं उत्तरगाथा
तह भाविदसामण्णो मिच्छत्तादी रिंबू विजेदूण | आराहणापडायं हरइ सुसंथार रंगहि ||२३||
'तह भाविदसामण्णो' इति । 'तह' तथैव राजपुत्रवदेव | 'भाविदसामण्णो' भावित समानभावः । पुव्वमिति शेषः । 'मिच्छत्तादी' मिथ्यात्वा संयमकषायशुभयोगाः इत्येतान् । 'रिव्' रिपून् । 'विजेवण' भृशं जित्वा । विशब्दो भृशार्थे प्रयुक्तः । यथा विवृद्धो मल्लः भृशं वृद्ध इति यावत् । अथवा 'विजेवण' नानाप्रकारं जित्वा यथा विचित्रमिति नानाचित्रमिति यावत् । एकान्तमिथ्यात्वं, संशय मिथ्यात्वं विपर्ययमिथ्यात्वं
धर्म और शुक्ल ध्यान करने में समर्थ हो सकूँ ॥ २१ ॥
'जैसे अभ्यास किया हुआ राजपुत्र लक्ष्यको वेधने आदिकी क्रियामें कुशलता प्राप्त करके शस्त्रप्रहार आदिके द्वारा राज्य लाभ करता है' यह आगेकी गाथासे कहते हैं
गा०—जैसे अभ्यासके द्वारा बार-बार लक्ष्यवेध शस्त्रप्रहार आदि क्रियामें दक्ष वह योद्धा राजपुत्र युद्ध भूमि में शत्रुको जीतकर राज्यके ध्वजको बलपूर्वक हरता है ||२२||
टी० - ' जोगाभाविदकरणो' में आभावित शब्दमें जो 'आ' है उसका अर्थ बार-बार या बहुत अधिक है । जैसे 'आधूमितं' का अर्थ धुएँसे अच्छी तरह भरा हुआ है । जो स्थान युद्धके लिए तैयार किया गया हो उसे युद्धरंग कहते हैं । प्राणियोंकी कालकृत जो दूसरी अवस्था विशेष होती है उसे कुमार अवस्था कहते हैं । उस अवस्थाके सम्बन्धसे यहाँ राजपुत्रको कुमार कहा है । अर्थात् जैसे युद्धमें दक्ष राजपुत्र शत्रुको जीतकर बलपूर्वक उसकी राज्यपताका हर लेता है वैसे ही आगे इस दृष्टान्तको दाष्टन्तिकमें लगानेके लिए उत्तरगाथा कहते हैं
गा०--उस राजपुत्रकी ही तरह पूर्व में समानभावका अभ्यासी साधु मिथ्यात्व आदि शत्रुओंको पूरी तरहसे जीतकर शोभनीय संस्तररूपी रंगभूमि में आराधनारूपी पताकाको ग्रहण करता है ||२३||
टी०—मिथ्यात्व आदिमें आदि शब्दसे मिथ्यात्व असंयम, कषाय और अशुभयोग लेना । 'विजेदूण' में 'वि' शब्दका अर्थ बहुत या पूरी तरह है । जैसे 'विवृद्धो मल्लः' का अर्थ बहुत अधिक बढ़ा हुआ योद्धा है । अथवा 'विजेदूण' का अर्थ 'नानाप्रकारसे जीतकर' होता है। जैसे विचित्रका अर्थ नानाचित्र होता है ।
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