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सुशिनी टीका भ १ ० १३ चतुरिन्द्रियादिना हिंसापयोजननिरूपणम् ५७
टीका-'अण्णेदि य ' अन्यत्र 'एमाइएहि' एरमादिको पूर्वोक्तसदृशैः 'बहुहि' बहुभिः नानाविधैः ‘ कारणसएदि ' कारणशतैः 'अनुहा' अबुधाः अज्ञा निनो जनाः इह-अस्मिन् जीवलोके 'तसे पाणे' असान् प्राणान् द्वीन्द्रियादीन् "हिंसति' हिंसन्ति नन्ति । तथा-'इमेय' इमाय-अंग्रे वक्ष्यमाणान् ‘एगिदिए' एकेन्द्रियान् पृथिव्यप्तेनोपायुवनस्पतिलक्षणान 'वहवे' यहून अनेकान् ‘वराए' वराकानदीनान , तथा-'तयस्सिए चेत्र' तदाश्रितान् चैव-पृथिव्या केन्द्रियाश्रयस्थितानपि 'अण्णे अन्यान् 'तणुसरीरे' तनुशरीरान्क्ष्ग शरीरान् 'तसे य' घसाथ 'समारभति' समारभन्ते उपमर्दयन्ति । कीदृशान तान् ? इत्याह-'अत्ताणे' अत्राणान्प्राणरहितान रक्षकाभावात् , 'असरणे' अशरणान-शरणदातुरभावात् ,
फिर भी करते है-'अण्णेहि य' इत्यादि ।
टीकार्थ-(अण्णेहि य ण्वमाहहिं यहि कारणमा अघुहाइह हिंसति पाणे) इत्यादि और भी नानाविध इसी प्रकार के सैकड़ों कारणों से अज्ञानी जीव इस लोक में दीन्द्रियादिक त्रस जीवों की हिंसा करते हैं। तथा (इमेय) वक्ष्यमाण इन (बहवे) अनेक प्रकार के (वराए) दीन (एगिदिप) पृथिवीकाय, अपूकाय तेजाकाय, वायुकाय, वनस्पति काय रूप एकेन्द्रिय जीवों को और (तदस्सिरा चेव ) इनके आश्रित रहे हुए (अण्णे) दूसरे पूर्वोक्त त्रस जीवों से अतिरिक्त ( तणुसरीरे ) छोटे शरीर वाले (तसे य) स जीयों की (समारभति) हिंसा करते है। इनकी हिंसा करते हुए जो इन अज्ञानी प्राणियों को सकोच नहीं होता है उसाक कारण यह है कि ये (अत्ताणे) इन एकेन्द्रियादिक जीवो का कोई रक्षक नहीं है इसलिये रक्षक के अभाव से ये सर त्राण रहित है। (असरणे)
४७ ५५] सूत्रधार ४ --"अण्णेहिय ' त्यात
'अण्णेहिंय एवमाइएहिं वहहि कारणसएहि अनुहा इह हिंसति तसे पाणे" ઈત્યાદિ બીજા પણ એવા જ પ્રકારના સેકડો વિવિધ કારણથી અજ્ઞાની જીવ भाभी हान्द्रियाति स योनी हिमा ४३ छ तथा “ इमेय " या प्रमाणे ते “वहये " मन प्रजा२न। “पराए" जिन्यास “ एगि दिए " पृथिवीय, माय, ते य, वायुय, वनस्पतिय३५ मेन्द्रिय वानी मने "तदस्सिएचे" तमना माश्रये २४सा "अण्णे" ulan पूति स तना " तणुसरीरे" नाना शरीरवाणा " तसेय" सयानी “समारभति" हिंसा કરે છે તેમની હત્યા કરતા તે અજ્ઞાની અને સકેચ થતું નથી કારણ કે " अत्ताणे" ते सन्द्रिया िलयोनु २६७ नथी तेथी २१४ने मलावे. ते मा त्राहीन- निराधार ) जे “ यसरणे" ते पृथिव्याहि ७ all v