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সালে सुभिदुन्भिरागदोसे पणिहियप्पा साहमणवयणकायगुत्ते संवुडे पणिहिइंदिए चरेज्ज धम्मं ॥ सू० ८ ॥ टीका-पीय ' इत्यादि
'पीय ' द्वितीया चक्षुरिन्द्रियसवरामिया भारनामाइ- 'चाखुइदिएण' चक्षुरिन्द्रियेण 'पासिय ' हान्टा ' वाणि' स्पाणि-आकारान् कीदृशानि ? 'मणुण्णभद्दगाइ' मनोजभद्रकाणि-मनोज्ञानि-मनोहराणि च तानि भद्रकाणि मुन्दराणि चेति कर्मधारयः, तथा-' सचित्ताचितमीमगाइ' सचित्ताचित्तमिश्रकाणि, तत्र-सचित्तानि-नरयुग्मादीनि, अचित्तानि-तत्मविकृतिरूपाणि, मिश्रकाणि
बस्वाभरणभूपितानि तान्ये, काष्ठपापाणादीनि ना दृष्ट्वा तेषु श्रमणेन न सक्तव्यमित्यायग्रेण सम्बन्ध । कस्मिन् स्थाने दृष्ट्वा इत्याह-रहें' काप्ठे-काष्ठफलके ' पोत्ये य' पुस्ते च-पुस्तके च 'चित्तकम्मे ' चिकिमणि 'लेप्पक
इस व्रत की द्वितीय भावना को करते है-'वीय इत्यादि।
टीकार्थ-(वीय) दूसरी चक्षुरिन्द्रिय सवर नाम की भावना है वह इस प्रकार से है-(चरखुइदिएण) चक्षुइन्द्रिय से (मणुण्णभदगाई) मनोज्ञ अतएव सुन्दर ऐसे (ख्वाड ) रूपो को कि जो (सचित्ताचित्त मीसगाई) सचित्त, अचित्त और मिश्रद्रव्य से आश्रित हो उन्हें (पासिय) देख करके साधु को चाहिये कि वह उनमे आसक्तचित्त न बन, यह आगे से सबन्ध है। नर नारी आदि सचित्त द्रव्य हैं, इन के प्रतिकृतिफोटो अचित्तद्रव्य हैं। वस्त्र आभूषण आदि से विभूषित नर नारी आदि मिश्नद्रव्य है । इनके आश्रित जो मनोहर आकार होता है वह मनोज्ञ सद्रकरूप है। इन सब का आकार (कट्टे) काष्ठ के
वे सूत्र१२ ॥ व्रतनी मी मापना सतावे -"बीय" त्याह
टी -" बीय " मी यक्षुरिन्द्रिय स१२ नामनी साना छे त मा प्रमाणे छ-" चम्खुइ दिएण" यक्ष धन्द्रयथी "मणुण्णभद्दगाइ" भनाश मन सुह२ मेवा " रूवाइ " ३पाने २ " सचित्ताचित्तमीसगाइ" सायत्त, मयित्त मन मिश्र द्रव्याने पाश्रित डाय, तभने “पासिय" धन तेभा સાધુએ આસક્ત થવું જોઈએ નહીં નર, નારી આદિ સચિત્ત દ્રવ્ય છે તેમની પ્રતિકૃતિ-ફેટે અચિત્ત દ્રવ્ય છે વસ્ત્ર, આભૂષણ આદિથી વિભૂષિત નર-નારી આદિ મિશ્ર દ્રવ્ય છે તેમના પર આધાર રાખનાર જે મને હર આકાર હોય છે તે મને ભદ્રકરૂપ છે તે બધાને આકાર “ ” લાકડાના પાટીયા પર