Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1064
________________ प्रमभ्याकरण वक्ष्यामाणपदार्थेषु स्थितान्'साइय' सादायित्वा अन्तिगृहम्यारम्यायामारपाय, 'किं ते ' कॉस्तान् केपु केषु पदार्थेषु स्थितांस्तान् ? इत्याद-'उग्गडिमविपिहपाणभोयणगुलकयखडकय तेलघयायभरखेमु जागादिमविविधपानभोजनगुडकतखण्डकृततैलघृतकृतमक्ष्येपु-तत्र अगादिमानि गाहनेन-वृतत गदिपु पोलनेन पाकतो निप्पन्नानि यानि तानि पकानानि खण्डखाबादीनि अगाहिमानि' कथ्यन्ते, तथा-विविधानि बहुविधानि पानभोजनानि, तया-गुड मतानि-गुडेन निप्पादितानि, खण्ड कृतानिमावण्टेन निप्पादिनानि, तेलघृतानि तैलेन घृतेन च ही धारण करना चाहिये, इसी विषय को मुत्रकार विशेषता से इस सूत्र द्वारा समझाते है-(जिभिदिएण) साधु जिहा इन्द्रिय से (मणुण्ण भद्दगाइ रसाणिउ) मनोज-भद्रक रसको (साइय) अस्वादित करके उसमें राग आदि न करे इस प्रकार का यहा समय लगा लेना चाहिये, (किं ते ) यह मनोज रस सिन २ पदार्थो के सारे रहता है, इस प्रकार की आशका का उत्तर देने के निमित्त सत्रकार यहां उन कितनेक पदार्थो के नाम निर्दिष्ट करते हैं (उग्गारिमविविहपाणभोयणगुलकय खडकयतेल्लघयक्रयभक्खेसु) घृत, तैल आदिका जिनमें पहिले भान (तला जाता) दिया जाता है और फिर बादमें जो उनमें ही चुरोये जाकर पकाये जाते है ऐसे खाजा आदि पक्वान्न अवगाहिम कहलाते हैं तथा अनेक प्रकारका जोपान भोजन होताहै वह विविध पान भोजन कहलाता है गुड मिला कर बनाया गया ' एच खाड मिश्रित कर बनाया गया विशेष भोजन गुड़कृत भोजन और खडकृत भोजन कहलाता है । तेल ભાવ જ રાખવું જોઈએ એ જ વિષયને સૂત્રકાર વિસ્તારપૂર્વક આ સૂત્રધારા सभव छ " जिन्मिदिएण" साधुसे लथी “मणुण्णभद्दगाइ रसाणिउ" भना- भरसना "साइय" मारवागने तमाशाह ४२वा लम नही " किं ते" से मना २४ ४॥ ४पहाभा डाय छे, ते प्रश्नन। ઉત્તર આપતા સૂત્રકાર અહીં એવા કેટલાક પદાર્થોના નામનો ઉલ્લેખ કરે છે ," उग्गाहिम-विविहपाण-भोयण-गुलमय-सडकय-तेल्ल-घयकय-भक्खेसु" घl, तस આદિનું જેમાં પહેલા જેમા મણ દેવાય છે અને પછી તેમા જ તળીને પક વવામાં આવે છે એવા ખાજા આદિ પકવાનને અવગાહિમ કહે છે તથા અનેક પ્રકારના જે પાન (પી શકાય તેવા) ભજન હોય છે તેમને વિવિધ પાન ભજન કહે છે, ગોળ નાખીને બનાવેલા ભેજનને ગુડકત અને ખાંડ નાખીને બનાવેલા ભેજનને ખાડકૃત ભજન કહે છે તેલ અને ઘીમાં બનાવેલ _લાડ

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