Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1068
________________ ९२८ प्रभव्याकरणको वगाइ" अमनोज्ञपारकान-भरुचिकरान् , ' रमाइ' रसान् 'साइय' स्वादयिस्या, ' किं ते ' कांस्तान्कयभूतांस्तान् रसान् । इत्याइ-'अरमपिरमसीयला व णिज्जप्पपाणभोयणाइ' अरसविरसशीतलस्मनिर्याप्यपानगोजनानि, तत्र-अरसानि रसरहितानि हिद्गगादिसस्कारसजितानि, पिसानि-निगवरसानि-पर्युपितानि, शीतानि शीतलानि क्षाणि-घृतादिलेशर्जितानि, निर्याप्याणि-बलपीनशक्ति रहितानि यानि पानगोजनानि तानि तथोक्तानि, तथा-'दोसीणगायनाहियपूइय-अमणुननिगह-पाय-बहुदन्भिगपियाइ' दोपनयापनकुषितपूतिगमनोत्र विनष्टप्रभूतबहुदुरभिगन्धितानि, ता-'दोसीग' त्ति-दोपान-दोपा-रात्रिस्तत्र पक्य यदन्न, रानिपर्युपितमित्यर्थः, आपन्न-चिनिष्ट,वर्णम् , कुयित कोथयुक्तम् , शटितमित्यर्थः, पूतिकम् गन्धयुक्तम् , अत एन-अमनोज्ञम् अमुन्दरम् , पिनष्टम्अत्यन्तरिकृतारस्थामाप्तम् , ततः प्रमृतः मादुर्भूतो यो बहु दुरभिगन्धा अतिदुर्गन्धः स जातो येषु तानि तथोक्तानि, तथा-'वित्ताडयफसायअपिलरमलिंदनीरसाइ' रक रसों का (साइय) आस्वादन करके उनमें साधुको राग द्वेपभाव वारण नहीं करना चाहिये । (किं ते ?) अमचिकारक रस कौन २ से हैं इस प्रश्न का समाधान करने के निमित्त सूनकार कहते हैं-(अरसविरससीयलुक्खणिज्जपण भोयगाइ ) अरस-हिङ आदिके बघार से वर्जित, विरस-रस से विहीन-पर्युपित, शीत-शीतल-ठडे, रूक्षघृतादि के लेश से रहित, निर्याप्य-चल पढाने की शक्ति से रहित, तथा (दोसीणवावनकुट्टिय पूदय अमणुनविणपनययहुदाभिगधियाइ ) दोसी णरानिमें पकाये गये व्यापन-विनष्ट वर्णवाले, कुथित-सडे हुए पूतिक दुगंधयुक्त, अतएव मनोज्ञ-असुन्दर तया विनष्ट-अत्यत विकृत अवस्था वाले और इसी कारण जिनमें से अत्यत दुर्गव निकल रही हो ऐसे तथा जो (तित्ताडयफसायअपिलरसलिंदनीरसाठ ) मरीच-मिर्च के जसा અરુચિકર રસનું “ત્તારૂ” આસ્વાદન કરીને તેમનામાં સાધુએ છેષભાવ રાખવા नमे नही " किं ते?" सचिडा२४ २स ४॥ ४॥ से प्रसनु सभा धान २वान माटे सूत्रा२ उ छ-" अरसविरससीयलक्सणिज्जप्पपाणभाय णाइ " ५२स-3 माहिना पधारथी २हित, विस-२सहित-पित, शात -શીતળ-ઠડા, રૂક્ષ–ઘી વિનાનું, નિર્યાય-ગળ વધારવાની શક્તિથી રફિક तथा “ दोसिणगावन्नकुहियपूइयअमणुन्नविणदपसूयवभिगधियाई " -२२२ राधेस, व्यापन-विनष्ट पवा-थित-मस, पूति:- Epinा, तथा અમને જ્ઞ-અસુ દર તથા વિનષ્ટ–અત્યત વિડત અવસ્થાવાળા અને એ કારણે सभाथी मत्यत नीती डाय तवा तथा २" तित्ताडुयकसायअबिल

Loading...

Page Navigation
1 ... 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106