Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुशिनो टोका अ०५ सू.११ स्पोन्द्रियसवर नामकपञ्चमभावनानिरूपणम् ९३९ प्ठशीपच्छेदनम् 'जिम्भयण' जिदान्दनम् , 'सणनयणहिययदतमजण' सृपणनयनहदयदन्तमञ्जनम्वृपणम्य-अण्डकोशस्य, नयनयोः, हदयस्य दन्ताना च भञ्जनम्-निनाशनम् , ' जोत्तलयकसम्पहार' योक्नलताकशाप्रहार:-योक्त्रण रजुविशेपेण, लतया वेगादिलतया, कशया च यः प्रहार , महारः, 'पारपण्डिजाणुपत्थरनिकाय ' पादपाणिजानुपस्तरनिपात' पादयोःचरणयोः, पाण्यों : पादपश्चाभागयो , जानुनो. ' घुटना ' इतिभापा प्रसिद्ध योश्च प्रस्तरनिपात:= पापाणपात', 'पीपण ' पीडन-पनो पीडनम् , 'करिक हु' कपिकन्छ.-तीनकप्रतिकारकवनस्पतिविशेषः, 'अगणि' अग्नि., 'विच्छुयडक' वृश्चिकटश 'वायातवदसमसगनिनाए' वातातपदगमशकरिपातः वातस्य आतरस्य दशाना मशकाना च निपतेनम् , एतेपा द्वन्द , तॉस्तथोक्तान स्पृष्ट्वा, तथा-'दुद्रुणिसिन्न दुनिसीहिया' दुष्टनिपद्यादुनै पेधिक्या दुष्टनिपद्या. क्षुद्रामनानि, दुनैपेधिकस्य-कष्टकर स्वाध्यायभूमयस्ताचस्पृष्ट्वा, 'तेमु तेपु-उक्तेषु 'अमणुन्नपावगेस' अमनोज्ञपापकेषु नासिका, शेठ ओर मस्तक का छेदन करना, 'जिन्भच्छेयण ' जीभ का छेदन करना 'वसण-नय ग-दियय-दत-भजण' अण्डकोप, नेत्र, हृदय और दातोंका भागना, 'जोत्त लय इस पहार' चमडे की रस्सी से, वेत्रा दिलता से, तथा चाक से प्रहार करना, 'पादपण्डिजाणुपत्यरनिवाय' पाव, एडी, घुटना,इन पर पत्थर का गिरना, 'पील ग' यत्र में पीलना, 'कवि कच्छु-अगणि-विच्छुय-डक' करेंच की फली,अग्निऔर बिच्छू का डक -स्पर्श, 'वायायवदसमसगनिवाए' गीतकाल में ठडे पवन का लगाना उप्णकाल में धूप का लगना, तथा डांस और मच्छरों का शरीर पर गिरना इन सबके स्पर्श का अनुभव करके(दुणिसिज्जदुनिसीरिया)कष्ट फारकआसन और स्वाध्याय की भूमि के स्पर्श को अनुभव करके (तेस्तु व, “जिब्भच्छेयण " खलनु न ४२७, “यसण-नयण-हियय-दत-भजण" सअप, नेत्र, ६५ अने हात 31, "जोत्त-लय-क्स पहार" याभानी होरीथी नेत२-मा सताथा तथा व्या ४थी ३८४२७, " पादपण्हिजाणुपत्थरनिवाय " 1, मेडी भने धूट ५२ पत्थरनु ५७७, " पोलण"-यत्रमा पास, "कविकच्छु-अगणि-विच्छय डक "-3रे यानी जी, AG मन विछीन! 34, “वायायवदसमसगनिवाए " शियाणामा 83 पवन साnal, Gनामा તડકો લાગવે, તથા ડાસ અને મચ્છરેનુ શરીર પર પડતુ, એ બધા સ્પર્શને शरी२ ५२ अनुभव उरीने " दुदृणिसिजदुन्निसीहिया" 3231२४ मासन भने २१क्ष्यायनी सूभिना १५०ने मनुमपान “ तेसु अमणुन्नपावगेसु" ते

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