Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1099
________________ सुदर्शिनी टोका अ०५ म् १ १३ उपसंहार ६४७ " 1 पि' या 'नानि - अहिंमादीनि ' महव्ययाह ' महानतानि ' हे उसयनिमित्तपुक्लाइ' हेतुशत विरिक्तपु'कला नि= हेतुशतैः = उपपत्तिशः विविक्ते:-निर्दोषः कृत्या पुष्करानि=वितीर्णानि 'कहियाह ' कथितानि 'अरिहतसामणे' अर्हच्छासने - जिनमाचने । ते च ' सारा. 'समासेण ' समासेन सक्षेपेण ' पच' पञ्चपञ्चसरयकाः, 'त्थरेण उ' विस्तरेण तु ' पण्णत्रीसह ' पञ्चविंशतिः - प्रतिसत्ररद्वार पञ्चपञ्चभावनामयेन पञ्चत्रिंशतिसरयकाः भवन्ति । अथ सपरधारिणा भाविनी दशा - 'सजए 'सयत साधु 'समिए ' समित: - ईर्यासमित्या - दिभिः पञ्चविंशतिभावना गिर्युक्त सहिए' सहितः - ज्ञानादर्शनाभ्या युक्त, 'सजुढे ' सटतः = कपायेन्द्रियसमरणयुक्तः 'सया' सदा ' जयणघडण विशुद्ध 6 3 अब सूत्रकार पाचो सचरों का उपसहार करते हुए कहते हैं'एयाइ ' इत्यादि । ( टीकार्य - ( सुन्वय 1) शोभनवत सपन्न हे जम्मू 1 (एयाइ पचचि मह जयाह) ये पाचों ही अहिंसा आदिक महाव्रत (अरिहत सासणे हेउसयविवित्तपुलाइ कहियाह ) अर्त प्रभु के शासन में सैकडो निर्दोष युक्तियों से विस्तृत करके कहे गये हैं । (सवरा समासेण पच ) वे सवर सक्षेप से पाच है परन्तु (चित्वरेण उ पणचीसई) विस्तार से पाच २ अपनी२ भावनाओ से सहित होने के कारण ये पचीस हो जाते है । ( सजए ) इन सवरदारों का पालन करने वाला सयत ( समिए ) ईर्यासमिति आदि पच्चीस भावनाओ से युक्त (सहिए) ज्ञानदर्शन से सहित और ( सघुडे ) कपाय एव इन्द्रियो के सारण से युक्त होता हुआ (सया ) सदा ( जयणघडण सुविसुद्वदसणे ) अपने तत्त्वार्थ श्रद्धानरूप दर्शन को હવે સૂત્રકાર પાસે સવરાના ઉપહાર કરતા કહે છે 66 एयाइ 'त्याहि टीडार्थ - ' सुव्यय ! " शोलननत युक्त हे न्यू! " याइ पचवि मह ध्वयोइ " महिमा माहि ते पाये महानत "अरिहत सासणे हेउसर्याविवित्त पुधलाइ पहियाइ " अर्हत अलुना शासनना सेडो निर्दोष युक्तियोथी विस्ता થી કહેવામા આવ્યા છે सवरा समासेण पच " ते भवर सक्षिप्तभा पाय छेपायु “ विरथरेण उ पणनीसई " विस्तारथी पोत पोतानी पाय पाय लाव नागो सहित होवाने जगणे पशीस थाय छे " सजए" मे सवरद्वारनु पालन अरनार सयत “समिए” यममिति आद्दि पथीस लावनाओोथी युक्त " सहिए" જ્ઞાનદર્શનથી યુકત અને सबुडे " उपाय भने इन्द्रियोना सवरथी युक्त जयणघडणसुविसुद्धद सणे " पोताना तत्त्वार्थ श्रद्धान 66 , 66 थाने " सया सहा

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