Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1097
________________ सुदर्शिनीटीका अ० ५ सू० १२ अध्ययनोपसंहर भवति । एवम् उक्तरूप पचम सवरद्वार, ' णायमुणिणा' ज्ञातमुनिना-प्रसिद्धक्षत्रियवंशोद्भवेन मुनिना भगरता महारीरेण 'पण्णविय' प्रज्ञापितम्-शिष्येभ्य सामान्यतया कथितम् ' परूविय' प्ररूपितम्-भेदानुभेदप्रदर्शनपूर्वक कथितम् , 'पसिद्ध ' प्रसिद्धम्मग्यातम् , प्रमाणप्रतिष्ठितत्वात् 'सिद्धवरसासण' सिद्धवरशासनम् सिद्धाना-निष्ठिताना कृतकृत्यानामितियारत् वरशासन-प्रधानाज्ञारूपम् , ' इण' इदम् ' आपरिय' आल्यात-समतोमावेन कथितम् , ' मुदेसिय' सदेशितम् सदेवमनुजामुराया सभाया सुष्टुपदिष्ट 'पसत्य' प्रशस्त 'पचम सबरदार' पचम सरकार 'समत्त ' समाप्तम् ' तिमि ' इति ब्रवीमि, अस्या र्यः पूर्वमुक्तः ॥ सू-१२॥ हुआ माना जाता है । (एव) इस प्रकार से ( नायमुणिणा भगवया) जात नामक क्षत्रियवश में उत्पन्न हुए मुनिराज भगवान् महावीर ने (पण्णविय ) शिष्यों के लिये इस पचम सवर द्वार को सामान्यरूप से समझाया, (परुविय) भेद प्रभेदपूर्वक उसका कथन किया है । (पसिद्ध) प्रमाणप्रतिष्ठित होने से जिन वचन में यह प्रख्यात हुआ है, अर्थात् जिनवचन के अनुसार ही आचार्यपरपरा से इसका पालन करना इसी रूप से चला आ रहा है । तथा (सिद्धवरसासणमिण) भूतकाल में जितने भी सिद्ध हो चुके हैं उनका यह प्रधान आज्ञारूपशासन है। (आपविय ) ऐसा भगवान महावीर प्रभुने सर्वभाव से इसके विषय में कहा है और (सुदेसिय ) देवो, मनुजों तथा असुरो से युक्त परिपदा में इसका उपदेश दिया है । ( पसत्य) सर्व प्राणिया का हितकारक होने से मगलमय है, इस प्रकार यह ( पचम सवरदार समत्त) पुचमसवरद्वार समाप्त हुआ, (त्तिमि ) ऐसा में कहता है। अर्थात् माज्ञा प्रभारी १ पादान थयु गाय छे “एव" मारीते " नायमणिणा भगवया" ज्ञातृ ण नामना क्षत्रिय १शमा लत्पन्न ये मुनिराकर भगवान महावीरे “पण्णविय" सिध्याने भाटे या पायमा स१२वारने सामान्य समन्यु छे, " परूविय " ले प्रसे पूर्व तेनु विवयन यु छ, “पसिद्ध" પ્રમાણ પ્રતિષ્ઠિત હોવાથી જિનવચનમાં તે પ્રખ્યાત થયું છે, એટલે કે જિન વચન પ્રમાણે જ આચાર્ય પરંપરાથી તેનું આ રીતે પાલન થતું આવ્યું છે. तथा " सिद्धवरसासणमिण" मृतकमा २८सा सिद्धो थक गया तभनु मा प्रधान आज्ञा३५ ॥सन छ, “ अधविय " मे लगवान महावीर सर्व माथी त विष छु छ, भने “ सुदेसिय" वे मनुष्य! भने अमुशनी परिपामा तन। पहेश या छ “पसत्य" ते भ प्रामानु हित ४२. ना२ उपाथी भणमय छ, म २ "पचम" पायभु " सवरदार समत्त" सवार सभात थयु 'तिवेमि " म छु. मेट

Loading...

Page Navigation
1 ... 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106