Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1085
________________ - सुदर्शिनी टीका म०५ सू०११ 'स्पछन्द्रियसपर'नामकपञ्चमभायनानिरूपणम् ९७ -गायपच्छण लक्खारस-भारतेल कलालत तउअसीसककाल्लोइसिंचण हडिवण रज्जुनिगल-सरलहत्यइय-कुभिपारदहण-सीहपुन्छण- उबधण- मूलभेय-गय चलणमलण-करचणकननामोडमीसछेयण-जिन्मठेयणवसणनयणहिययदतभनणजोत्तल यकसप्पहार-पादपण्हि जाणु-पत्थर-निगाय-पीलण कनिकच्छुअगणि-विच्छय डकवायायव-दसमसग-निवाए 'अनेकानन्धताडनाइनातिभारारोपणागभञ्जनसूचीनखप्रवेश-गारमतक्षण-लक्षारस खारतैलकलकलायमानत्रपुक सीसककाललोहसेचनहडिवन्धनरज्जुनिगडसफलहस्तान्दुक कुम्भीपाकदहनसिंहपुच्छोद्वन्धन शूल भेद-गजचरणमर्दन-रचरणर्णनासोप्ट शीर्पच्छेदनपणनयन हृदयदन्तमञ्जनयोलत्तारशाप्रहारपादपणिजानुप्रस्तरनिपातपीडनकपिकच्छपग्नि वृश्चिक-दशवातातपदशमशकनिपातान , ता-भनेको बहुविधो यो पधा-यष्टपायाघाता, रज्ज्वादिन्धिः , ताडनम्-चपेटादिताडनम् ,अङ्कनम्=तप्तायः शलाकादिना गाने चित्रकरणम् , अतिभारारोपणम्-प्रमाणारिस मारामारोपणम् , अगभञ्जनम् शरीरावयत्रघोटनम् , ' मुईनग्वप्पवेस' मचीनग्वप्रवेश मचीना नखेषु प्रवेश प्रवेशकरणम् , अगभजणसईनखप्पस-गायपच्छण-लक्खारस खारतेल्लकलकलत-तउ सीसमकाललोरसिंचण-डियधण-रज्जुनिगल-सकलन हत्यड्डय कुभिपाकदहण-सीहपुच्छण-उच्चधण-मूलभेय-गयचलणमलण- करचरणकन्न नासोटसीमठेयणजिम्भयण-वसण-नयणयिय-दतभजण- जोत्तलयसप्पहार -पाटपहिजोणुपत्थरनिवायपीलणकविफच्छुअगणिविच्छुयडरचायायवदसमसगनिवाए) वह अनेक प्रकार से यष्टयादि द्वारा आघात करने रूप वध, बधण-रज्ज्वादि द्वारा बाधनेरूप वधन, तालणचपेटा-यप्पड आदि मारने रूप ताडन, अकण-तपी हुई लोहे की सलाई से शरीर में चित करने रूप अकन, (अईभारारोवण) प्रमाण से अधिक भार का लादना, (अगभजण ) शारीरिक अवयव को तोडना (सूईनअगभजण-सूईनसप्पवेस-गायपन्ण -लम्सारस सारतेल्लकलकलत--तउसीसककाल लोहसिंचण-हडियधण रज्जुनिगल सकल्न हत्थडुय्कुभिपाकदहणसीहपुच्छण उनधण-सूलभेय गयचल्णमलण करचरणकन्ननासोट्ट सीसछेयण जिन्भछेयण -वसण नयण हिययद तभजण-जोत्तल्यकसप्पहार-पादपण्हि जाणुपत्थर निवाय पारणकवि कन्छु-अगणिविच्छय-डक्यायायवदसमसगनिवाए "ते भने अडानी दा माहिना प्रा२३५ वध, बधण-हा२। सामाधा३५ मधन, तालण-२५४ આદિના માર રૂપ તાડન, 18-તપાવેલા લોઢાના સળીયા વડે રાગીર પર भ हेवा३५ निशान, अइभारारोवण-वबारे अभाशुभा मार दाये।, अगभजणशीना मगनु छेन सूईनसम्पवेस-मायने नम ही हवी, गायपच्छण ११८

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