Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुदर्शिनी टीका ०५ सू०११ स्पोन्द्रियसंवर'नामफपञ्चमभावनानिरूपणम् ९-७ - गायपच्छण लक्खारस-पारतेल कल्पलत तउअसीसककाललोहसिंचण हडिवण रज्जुनिगल-सरलहत्यय-कुभिपारदहण-सीहपुन्छण- उन्चधण-मूलभेय-गय चलणमलण-फरचगाननामोहमीसडेयण-जिन्भछेयणवसणनयणहिययदतभनणजोतलयकसप्पहार-पादपहि जाणु-पत्थर-निगाय-पीलण कनिकच्छुअगणि-विच्छुय डक्वायायव-दसममग-निवाए 'अनेस्वधरन्धताडनाइनातिभारारोपणागभञ्जनसूचीनखमवेश-गारमतक्षण-लक्षारस खारतैलकलकायमानत्रपुक सीसककाललोहसेचनाडिन्धनरज्जुनिगडसफलहस्तान्दुक कुम्भीपाकदहनसिंहपुन्छोहन्धन शूल भेद-गजचरणमर्दन-रचरणवर्णनासाष्ट शीर्पच्छेदनपणनयन हृदयदन्तमञ्जनयोलत्तास्गाप्रहारपादपणिजानुप्रस्तरनिपातपीडनकपिफच्याग्नि-वृश्चिक-दशवातातपदशमशकनिपातान् , तन-अनेको रहुविधो यो धान्यष्टयाद्याघातः, रज्ज्वादिभिर्मन्धः, ताडनम् चपेटादिताडनम् ,अङ्कनम्-तप्ताय शलाकादिना गाने चिन्नकरणम् , अतिभारारोपणम् प्रमाणाधिनमारामारोपणम् , अङ्गभञ्जनम् शरीरावयव. त्रोटनम् , ' मुईनावप्पवेस' मचीनखप्रवेशमृचीना नखेषु प्रवेश प्रवेशकरणम् , अगभजणसूईनग्वप्पवेस-गायपच्छण-लपवारस खारतेल्लकलकलत-तउ सीसककाललोसिंचण-रडियधण-रज्जुनिगल-सकलन हत्थडुय कुभिपारदहण-सीहपुच्छण-उन्नधण-सूलभेय-गयचलणमलण- करचरणकन्न नासोहसीस यणजिन्भटेयण-वसण-नयणयिय-दतभजण-जोत्तलयकसप्पहार - पाटपणिहजाणुपत्थरनिवायपीलणकविकच्छुअगणिविच्छुयडक्वायायवदसमसगनिवाए ) वह अनेक प्रकार से यष्टयादि द्वारा आघात करने रूप वध, वधण-रज्वादि द्वारा बाधनेस्प वधन, तालणचपेटा-यप्पड आदि मारने रूप ताडन, अकण-तपी हुई लोहे को सलाई से शरीर में चिह करने रूप अकन, (अईभारारोवण) प्रमाण से अधिक भार का लादना, (अगमजण) शारीरिक अवयव को तोडना (सूईनअगभजण-सूईनसप्पवेस-गायपाउण-रक्सारस सारतेह्कलकलत-तउसीसककाल
लोहसिंचण-हडिबधण रज्जुनिगल सकलन हत्थडुय्कुभिपाकदहणसीहपुच्छण उच्चधण-सूलभेय गयचल्णमलण करचरणकन्ननासोद्र सीसछेयण जिभछेयण वसण नयण हिययद तभजण-जोत्तल्यकसप्पहार पादपहि जाणुपत्थर निवाय पालणकवि कच्छ-अगणिविच्छय-डक्वायायपदसमसगनिवाए " ते मने प्रारनी साडी माहिना प्रहा२३५ वध, बधण-हा२। माह माधवा३५ मधन तालण-२५४ આદિના માર રૂપ તાડન, સાતપાવેલા લોઢાના સળીયા વડે શરીર પર आम पा३५ निशान, अइभारारोवण-पधारे प्रमाणुमा लार दावो, अगभजणशीना मगनुछेन सृईनसप्पवेस-मायने नसभा ही हवी, गायपच्छण
प्र-११८

Page Navigation
1 ... 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106