Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1081
________________ सुशिनी टीका भ०५ सू०११ स्पोन्द्रियसंघर'नामफपञ्चमभावनानिरूपणम् ९३५ यावणा य' शरीरस्य अङ्गारमतापनाश-हिनिपेषणानि च, 'आयवनिद्धमउयसीयउसिणलहुया य ' आतपस्निग्धमृदुकशीतोष्णलघुकांच, ता-जातपः सूर्यतापः, स्निग्धाः चिषणा , मृदुका कोमलाः, उप्णा जन्मयुक्ताः, लघुमा-मनोज्ञाः, एपामितरेतरयोगहन्दः, 'जे' ये ' उउसुइफासा ' ऋतुमुखस्पर्शा:-कन्तुपु-हेगन्वादिपु मुखामुखकरः स्पर्शी येपा ते तथोक्ता', 'अगसुहनियुइकरा' अन-- मुखनिवृतिकरा' अहसुस-शरीरसुस, निर्वृतिः=मनः स्वास्थ्य च कुर्वन्ति ये ते तथोक्ताः, 'ते' तान् स्पृष्ट्वा, 'समणेण' अमणेन-साधुना 'तेसु ' तेपु-पूर्वोतेषु ' मणुनभद्दएसु फासेस' मनोज्ञभद्रकेपु पर्गेपु, तथा-एभ्यः 'अन्नेसु य' अन्येषु च ' एवमाइएसु ' एवमादिकेषु 'फासेस ' स्पर्शपु ' न सज्जियव्य 'न सक्तव्यम् भासक्तिनै फर्तव्या, तथा--'न रज्जियन्व' न रक्तव्यम्-रागो न कर्तव्य', 'न गिज्झियन्त्र' नगडितव्यम्-गृद्धिभावो न कर्त्तव्यः, 'न मुज्झि यन्न ' न मोहितव्यम्-ता मोहो न कर्तव्य , तथा-न 'पिणिपाय' रिनिर्घात = तदर्थ चारितभ्रशः, 'आजिजयन्ध ' आपत्तव्यः कर्तव्य इत्ययः, 'न लुभियन' न लोब्यव्यम्-लोभो न कर्तव्यः, ' अज्ज्ञोवधज्जियन' न अध्युपपत्तव्यम्-तत्मा(आयवनिमयसीय उसिणल्या य) सूर्य के ताप को, चिकणपदार्थ को, कोमलपदार्थ को उष्ण पदार्य को, हल्के पदार्थ को, कि (जे) जो उ उ सुरफासा) ऋतु के अनुसार जिनका स्पर्श सुखजनक होता है और ( अगसुनिन्चुइकरा) शरीर को एव मन को आनद प्रदान करता है, उनको शरीर से स्पर्श करके (समणेण ) साधु को (तेसु) उन २ (मणु नभदएसु फासेसु) मनोजभद्रक-रुचिकारक-स्पर्धा में तथा (अण्णे सु य एवमाइसु फासेसु) इन से अतिरिक्त और भी स्पो मे (न सज्जियव्व, न रज्जियव्य, न गिज्झियव्य, न मुझियव्ध, न विणिवाय आवज्जियन्व, न लुभियन्व, न अज्झोपवज्जियव्च, न तुसियन, न यसीय-उसिण-लहुया य" सूर्यना पनी, मुसायम पहानी, ओमण पहाथनी, GEY पहायना, इस पार्थना, "जे" "उउसुहफासा" रे ऋतु प्रभारी नरेनो स्५श सुहाय सागे छ भने “अगसुहनिम्बु इकरा" शीरने तया भनने यान मापे छ, तेभने। शरीरथी २५श शन " समणेण" साधु " तेसु" ते ६२७ “ मणुन्नभद्दएसु फासेसु" तनाशनद्रथि२८ स्पर्शामा तथा “ अण्णेसु एवमाइएसु फासेसु" ते सिवाय ॥ भी ५५ २५ मा “न सज्जियध, न रज्जियम, न गिझियव्य , न मुज्झियन्त्र, न विणिधाय आवज्जियव्व, न लुभियव्व , न भज्झोववज्जियव्व , न तुसियव्य,

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