Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका थ०५ सू० १० जितेन्द्रिय सघर' नामक चतुर्थ भावना निरूपणम् ९२३ चतुर्थी भावनामाह -- ' चत्य' इत्यादि
मूलम् - चउत्थं जिव्भिदिएण साइय रसाणिउ मणुण्ण भगाई, कि ते ? उग्गा हिस विविपाणभोयण गुलकय खडकय तेल्लघयकयभक्खेसु बहुविहेमु लवणरससंजुत्तेसु, बहुप्पकारमज्जियनिट्टाणगदालियव सेहंव दुद्धदहि-- सरयमज्जवरवारुणी सीहुकाविसायण सागद्वारसब हुप्पगारेसु य भोयणेसु य मणुण्णवण्णगन्धरसुफासत्र हुदव्त्रसंभिएस अपणेसु य एवमाइएसु रसेसु मण्णभद्दएसु न तेसु समणेण सज्जि - यव्वं जाव न सइ च मइ च तत्थ कुजा । पुणरवि जिव्भिदिएण साइयरसाई अमणुण्ापागाइ, कि ते ' अरसविविरससीयलक्खणिजप्पमाणभायणाइ दोसी वावण्णकुहिय पूइच अमणुण्णविणट्टप्पसूय बहुदुभिगधियाइ तित्तकडुयकसाय अविलरसलिदनरिसाइ अण्णेसु य एवमाइएस रसेसु अमणुण्णपावएसुन तेसु समणेणं रुचियवव्वं जाव चरेज्ज
धम्म ॥ सू०१०॥ टीका
उत्थ ' चतुर्थी जिवेन्द्रिय सवरणलक्षणा भावनामाह - 'जिभि दिएण ' जिह्वेन्द्रियेण ' मणुष्णभद्दगाइ ' मनोजभद्रकान् ' रसाणि उ' रसाँस्तु
अब सूत्रकार इस व्रत की चौथी भावना को कहते है
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'उत्थ' इत्यादि ।
टीकार्थ - (उत्थ) चौथी भावना का नाम जिह्वेन्द्रियसवरण है। इस भावना के वशवर्ती हुए साधुको जिह्वा इन्द्रियके मनोज्ञभद्रक विषयमे और अमनोज अभद्रक विषय में रागद्वेष नही करना चाहिये - प्रत्युत समभाव
वे सूत्रधार माघतनी थोथी लारना बताये छे" चउरथ " त्याहि टीअर्थ–“ चउत्थ " थोयी लावनानु नाम भिड्वेन्द्रिय सवश्य छे આ ભાવનાનું પાલન કરનાર સાધુએ જિલ્લા ઈન્દ્રિયના મનેજ્ઞ ભદ્રક વિષયેામા અને અમનેાજ્ઞ અભદ્રક વિષયામા રાગ દ્વેષ રાખવે જોઈએ નહી, પણ સમ

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