________________
९०४
प्रभण्याकरणको दिस्वरूपम् , एपां द्वहः, तानि तथोक्तानि दृप्टा, तया- बहुविधानि अनेक काराणि च-पुनः ' अहिय ' अधिकम्-अत्यर्थ यथा स्यात्तथा 'नयणमणमुहकराई' नयनमन सुखकराणि = नयनयोर्मनसश्च मुखकराणि-मुग्योत्पादकानि 'मलाउ' माल्यानि 'माला' इति भापा प्रसिद्धानि तथा-' पणसढे ' वनपण्डान्मएकजा तीयानामनेकजातीयाना च वृक्षाणा समूहान् , 'पन्या य' पर्वतांश्च 'गामागरनगराणि य ' ग्रामासरनगराणि च दृष्ट्या, तया-'सुद्दियपुरसरिणी-वावीदीहिय-गुजालिय-सरमरपतिय-सागर-गिलपतिय-खाइय-नई-सर-तलाग-वि पिणो ' क्षुद्रिका पुष्करिणी वापी दीपिका गुञ्जालिका सरः सर. पहितका सागर -पिलपडितका-खातिका-नदी-सरस्तडागवमान् , तत्र-सुद्रिरा-लघुजलाशयति शेपः, पुष्करिणी कमलपती तुलाकारा पापी-चतुप्फोणा, दीर्घिकाम्याकारपापी, गुञ्जालिका-चक्राकारयापी, सर: सर पदिक्तका-येपा म ये एक्स्मात्तड़ा गादपरस्मिस्तडागे जल समायाति, एतादृशजलाशयसमूहः सरसर. पहिस्तकेको निहार कर, (देखकर) तथा (रहविहाणि) अनेक प्रकार की (मल्लाइ) मालाओं को कि जो (अहिय नयणमणसुकराड) अधिक से अधिक रूप में नेत्र एव मन को आलादकारक होती हों देखकर (वणसडे) एक जातीय और अनेक जातीय वृक्षा के समूतो को (पव्यए य) पर्वतों को ___गामागरणगराणि ) त्राम, आकर, नगरों को (सुद्दिय पुस्खरिणी-वावी -दीरिय-गुजालिय-सरसर-पति य-सागर-निलपति य-खाइय-नईसर-तलाग-वप्पिणो) क्षुद्रिका-लघु-जलाशय, पुष्करिणी-कमलों से युक्त गोल आकारवाली वावडी, वापी-चार कोनोवाली वावडी, दीधिका -लम्वे आकार बाली बावडी, गुजालिका-वक आकारवाली बावडी, सरः सरः पक्ति-एक तालाय से दूसरे तालावो मे जल जाने वाले तालाब के समूह, सागर-समुद्र विलपक्ति-विलोंके जैसे आकार वाले कूओं की, सातिम उपाय छ त पचानेनन तथा"बहुविहाणि" मने प्रारनी "मल्लाइ" भावासा “ अहिय नयणमणसुहकराइ" माम अने भनन वारेमा धारे मानहाय डाय, तभनन “वणसडे" मे तन, मने तना वृक्षन। समूहाने "पव्वएय" पप्तान, "गामागरणगराणि" नाम, २४२, नशाशने "खुद्दिय पुक्परिणी पानी-दीहिय गुजालिय सरसर पतिय-सागर बिलप तिय खाइय नई -सर-तलाग-वप्पिणो" क्षुद्धिा-नानु राय, डी -उभगाथा युत l કારની વાવ, વાપી–ચાર ખૂણાવાળી વાવ સર સર પક્તિ-એક તળાવમાંથી બીજા તળાવમાં પાણી જતુ હોય તેવા તળાને સમૂહ, સાગર, બિલપક્તિ-દરના