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सुशिनी टीका भ०५ सू० प्रसस्थावरायपरिग्रहनिरूपणम् सोऽपि परिग्रहीतु कल्पते । तया न ' आणह ' उपानहम्-उपलक्षणत्वात्पादुकामोजादिक चाऽपि परिग्रहीतु न कल्पते, तया-न 'पेहुणीयणतालियटगा' पेहुण व्यजनतालवृन्तकानि, पेहुण-मयूरपिच्छम् , व्यजनप्रशादि निर्मितम् , ताल वृन्तक-ताल्पानिर्मित न्यजनम् , एतानि 'परया' इति भापापसिद्धानि, एपामि तरेतरयोगद्वन्द्वः तानि मनसापि परिग्रहीतु न क्ल्पन्ते, तया-'ण याविन चापि ' अयतउयतरसीसरसरययजायस्वमणिमुत्ताहारपुटगसग्वदतमणिसिंगसेलकायवरचेलचम्मपत्ताइ ' अयस्त्रपुताम्रसीसकास्यरजतजातरूपमणिमुक्ताहारपुटकशद्दतमणि श्रृगशैलयाचारचे चर्मपात्राणि, तर = अयो = लोहः, त्रपुङ्गम् , 'कथीर'' रागा' प्रति प्रमिद्धम् , ताम्र प्रसिद्धम् , सीस= सीसा' इति प्रसिद्धम् , कास्यम्पु ताम्रसयोगज द्रव्यम् , रजतम्='चान्दी' प्रसिद्धम् , जातरूपम्-सुवर्णम् , मणया-इन्द्रनीलाद्या.. मुक्ताः-मुक्ताफलानि, हारपुटक-लोहविशेष', शत-प्रमिद्धः, दन्तमणि. गजमस्तकसमुत्पनोमणि , श्रृङ्ग-हरिणप्रभृतीना कमण्डल भी वह नहीं रग्वता है । ( नोवाण ) जते, ग्वडाऊँ आदि भी वह रखने की इच्छातक नहीं करता है । (न पेहण वीयण तालियटगा) पेटुणमयरपिच्छ,वश शलाकादिनिर्मित बीजना, तालपत्र निर्मित व्यजन -पखा, उन्हें भी वह रखने की मन से भी चाहन नहीं करता है। (ण यावि अय-तस्य-तबसीस-कम-रचय-जायरूव-मणि-मुत्ता-हार-पुटग-साव-दत-मणि-सिग-सेल-कायवर-चेल-चम्म-पत्ताह गुणवओ पलिकडिट) लोहे का पात्र, पु-रागा पा पात्र, नावे का पात्र, सीस। का पात्र, कासे का पात्र, चादी का पात्र, सुवर्ण का पात्र, इन्द्रनील आदि मणि का पात्र, मुक्ताफव-मोती का पात्र, हारपुटक-लोहविशेप का पात्र, शख का पात्र, गजमोती का पात्र, हरिण आदि पशुओं के श्रृग पाए। माहवा माटे ४भने ५ ते सभी सता नथी "नो वाणह " OM31, माहिराभवानी ते ५ उता नथी “न पेहुणवीयणतालि यटगा" -मयूरचिन, 4AAR निमितविणे, ताप निमित ५मा, तभन रामपानी ते भनयी ५ ते छ। उता नथी “ण यावि अयतउय-तब-सीस-कस-रयय-जायरूब-मणि-मुत्ता-हार पुडग-सस दत-मणि-सिंगसेल-काववर-चेलचम्म-पत्ताइ गुणरओ परिकड्ढि उ " बोटानु पात्र, धु-सानु પાત્ર, તાબાનુ પાત્ર, ગીગાનુ પાત્ર, કાસાનું પાત્ર ચાદીનું પાત્ર, નાનું પાત્ર, ઈન્દ્રનીલ આદિ મણિનુ પાત્ર, મોતીનુ પાત્ર, હારપુરક-લેહવિશેષનું પાત્ર, ગજમોતીનુ પાત્ર, ગુખનું પાત્ર, હરણ આદિ પશુઓના શિગડાનું પાત્ર, प्र १०७