Book Title: Prashna Vyakaran Sutram
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 1037
________________ सुदर्शिनी टीका २०५ ०७ ' निस्पृहता 'नामकप्रथमभावनानिरूपणम् 1 भूपण विशेष, एपामितरेतयोगद्वन्द्वः, एतान्येन भूषणानि, तेपा शब्दास्ताँस्तथोकान तथा - लीलचम्ममाणुढी रियाङ' लीलाचङ्क्रम्यमाणोदीरितान् लीलया चङ्क्रम्यमाणाना=मलील गच्छन्तीनाम् उदीरितान् =भूपणजनितान् शब्दान्, तथा - 'तरुणीजण सियभणिय कलरिभियमजुलाई' तरणीजनहसिवभणितकलरिभि तमज्जुनि तरुणीजनस्य यानि हसितानि भणितानि, कलरिभितानि=मधुररणनानि = मज्जुलानि=मनोहराणि च तानि तथोक्तानि तथा-' गुणवयणणि य ' गुणवचनानि च कामगुणवर्द्धकवचनानि च ' बहूणि' हूनि - अनेकविधानि तथा 'महूरजणभासियाड' मधुरजनभाषितानि मधुराणि यानि जनभापितानि=वाल स्वरत्युक्तानि गायकजनगानानि तानि श्रुत्वा 'समणेण श्रमणेन साधुना ' तेसृ ' तेषु मणुण्णभद्दएस ' मनोज्ञभद्रकेषु ' सद्देसु ' शब्देषु तथा 'अण्णेसृ य' अन्येषु च एव माइएस' एनमादिकेषु शब्देषु न ' सज्जियन्त्र सक्तव्यम् - आमक्तिर्न कर्तव्येत्यर्थः तथा-' न रज्जियव्व' न रक्तव्य-रागो न कर्तव्यः, 'न गिज्झियन' न गर्धितव्यम् = गृद्धिभावो न कर्तव्यः तथा-' न मुज्झि S 1 न " जालक - एक प्रकार का आभूषण विशेष, इन सब शब्दों को तथा (लोलचकम्ममाणु दीरिया ) लीलासहिन जाती हुई स्त्रीयों के भूषणों के शब्दों को, तथा (तरुणीजण सिय भणियकलरिभियमजुलाइ ) तरुणियों के हसित, मणित, कलरिभिक और मनोहर, ऐसे (बहणि गुवयाणि) अनेक प्रकार के कामगुणवर्धक वचनो को तथा ( महुरजण भासियाइ तालस्वरयुक्त गायकजनो के गानो को सुनकर के साधुको (तेसु मणुण्णमद्दण्ड ) उन मनोज्ञ एव मधुर (सद्देसु) शब्दो में तथा ( अण्णेय एवमाइएस) इसी प्रकार के और भी दूसरे शब्दों में (न सज्जियन) आसक्ति नहीं करना चाहिये, (न रज्जियच्च ) राग नहीं करना चाहिये, (न गिज्जियन) गृद्धिभाव नही करना चाहिये, अर्थात् તથા लोटचकम्ममाणुदीरियाइ " सीसासहित नती श्रीमोना भाभूषशोना भवाने तथा "तरुणीजण - हसिय- भणिय- कल रिभिय-मजुलाइ તરુણીઓના हसित, लक्षित, सरिलित भने मनोहर, मेवा " बहूणि गुणत्रयणाणि " અનેક પ્રકારના કામ વર્ષીક શબ્દોને તથા महुरजणभासियाइ " गायना तास स्वरयुक्त गीताने सालजीने साधुखे " तेसु मणुष्णमद्दए सु " ते मनोज्ञ અને મધુર 66 सहसु " शुण्डोभा तथा " अण्णेसु य एवमाइण्सु अजरना जीन्न राहोमा पशु " न सज्जियन्त्र " मासहित ४२वी लेड से नही " न रज्जियन्त्र " राग रखे। लेयेि नही, "" न गिझियन्त्र " गृद्धिभाव न मेवा (< ८८ ८९५ ""

Loading...

Page Navigation
1 ... 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076 1077 1078 1079 1080 1081 1082 1083 1084 1085 1086 1087 1088 1089 1090 1091 1092 1093 1094 1095 1096 1097 1098 1099 1100 1101 1102 1103 1104 1105 1106