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प्रभव्याकरणसूत्र जलादिपात्राच्छादनवस्त्रखण्डम् , 'गो भो' गोन्जाममानिका, तथा-'तिभि य पन्गा ' यश्च मन्छादकाः, 'चादर ' प्रसिद्धाः, वन-दौ मूत्रनिर्मिता, एक ऊर्णनिर्मितः, तथा-'रओहरणचोलपट्टकमुहणतकमाईय' रजोहरणचोलपटकमुखान न्तकादिकम् , तत्र-रजौहरण प्रसिद्धम् , चोलपटक परिधानास्त्रम् , मुग्मानन्तक सदोरकमुखवस्त्रिका, एतान्यादौ यस्य तत्तथा, 'एयपि य एतदपि च 'उवगरण' उपकरणम् 'सजमस्स' सयमस्य सापद्ययोगविरतिलक्षणसप्तदशनिघस्य ' उववृह हणट्टयाए ' उपत्र हगार्थतायै, वृद्धार्थमित्तयः, अब सार्थे तल्प्रत्ययः । तया'वायायवदसमसगसीपरिरक्खणद्वयाए' गावातपदशमशकशीतपरिरक्षणार्थताये, तत्र वातातपादि सरक्षणार्थ, रागदोसरहिय रागद्वेपरहित यथा भाति तया णिच्च' नित्य 'परिवहिया ' परियोढव्यम्-परिधर्तव्य, 'सजएण' सयतेन। 'पहिलेहणपप्फोडणपमज्जणाए' प्रतिलेखनप्रस्फोटनममार्जनायाम् , तत्र-प्रतिलेखनका वस्त्र, (गोच्छओ) गोच्छ-प्रमाजिका, तथा (तिणि य पच्छागा) तीन प्रच्छादक-चादर (इनमें २ सूत के चादर और १ उनका कपल रहता है ) ( रओहरणचोलपग-मुहणतगमाईय) रजोहरण, चोलपट्टक, मुखानन्तक,-सदोरकमुखबस्त्रिका आदि ये उपकरण रहते हैं सो (ण्यपि य ) ये उपकरण भी (सजमस्स उवगृहणठ्याए ) उस साधु के सत्रह प्रकार के सयम की रक्षा के निमित्त एव वृद्धिके निमित्त ही होते हैं तथा- (वायायवदसमसगसीयपरिरक्खणट्टयाए ) चात, आतप -धूप दशमशक, और शीत से रक्षा करने के लिये है । इसलिये (सज एण) सयत को (रागदोसरहिय ) रागद्वेष से विहीन होकर (णिच्च) मर्चदा ये धौंपकरण ( परिचयिन्च) धारण करना चाहिये अर्थात् अपने पास रखना चाहिये। और इनकी (पडिलेडणपप्फोडणपमज्ज
यात्रावानु वस्त्र, "गोन्छओ" गो२७४-मावि तथा "तिण्णी य पच्छागा" a अछा-या४२ (तेमा मे सूत। मने मेड जननी भित हाय छे) ' रओहरण-चोलपग-मुहण-तगमाईय " २७२५, यासप, भुभानन्त-हा। सङितनी मुखपत्ता, मा ५३२-२ , जी " एयपिय" ते ५४२६५ ५ " सजमस्स उवग्रहणयाए" ते साधुना सन्तर २ सय भनी २क्षाने भाटे मन वृद्धिन माटर खोय छ तथा "वायायवद समसग सीयपरिरक्षणट्रयाए" वात, ती भश मन शीतथा २सय ४२वान भाट तेथी " सजएण" स यतने "रागदोसरहिय " रागद्वेषथा ॥ थन "णिच्च" सहा ते घ ५४२५५ परिवहियब्ध " धारधु ४२वा नम, शटले पातानी पामे रामान भने भनी " पडिलेहण