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सुदर्शिनी टीका थ०५ सू०५ संयताचारपाकलस्य स्थितिनिरूपणम् निष्प्रकम्पः=दिव्याटुपसर्गस सर्गेऽपि धर्म व्यानादा निश्चल इत्यर्थ, जहा सुरो' यथा क्षुर' =क्षुर इव ' एगधारे चैत्र ' एस्थान, यथा क्षुरएकधारस्तथैव साधुत्सर्गरूपैकधारो भवति, वर्द्धमानपरिणामधारकइत्यर्थ, जहा अही' यथाऽहिः = अहिनिसर्प इत्र ' एगदिट्ठी चैन ' एकदृष्टि = मोक्षे बद्धलक्ष्य इत्यर्थः, तथा - ' आगास चैव निराल' आकाशमिन निरालम्म' । यथाऽकाशआलम्बनमर्जितम्तथैव श्रमitsपि ग्रामदेशकुलाद्याम्यनरहित इत्यर्थ, तथा ' विहगे विन' विहग हा पक्षीर 'सव्वओ' सर्वतः 'विप्मुके विमुक्तः निष्परिग्रह इत्यर्थः तथा - ' उरए निप्पकपे) शून्य घर और शून्य आपण दुकान के भीतर निर्वान (वायुरहित) प्रदेश में रखे हुए दीपक की प्रज्वलिन लो जेसे निष्प्रकप होती है उसी प्रकार साधु भी देवादिकृत उपमर्गों के आने पर भी धर्मध्यान आदि में निष्प्रकप निश्चल बना रहता है । (जहाखुरो चेव एगधारे) जैसे क्षुरा ऊस्तरा - एक धार वाला होता है उसी प्रकार साधु भी उत्सर्गरूप एक धार वाला होता है । अर्थात् - साधु के परिणाम प्रकृष्ट विशुद्धि को लिये वढते ही रहते है, वे प्रतिपाती परिणामों वाले नहीं होते हैं । (जहा अही चेव एगदिट्ठीं ) सर्प जिस प्रकार एक दृष्टिवाठा होता है उसी प्रकार साधु भी अपने लक्ष्यरूप एक मोक्ष में निषद दृष्टिवाला होता है । (आगास चे व निरालवे ) आकाशकी तरह वह आलयन - सहारा से रहित होता है अर्थात् साधु को ग्राम देश, कुल आदी का आलनन नहीं होता है। वह इन सन ग्रामादि से सर्वथा रहित ही होता है । (विहगे विव सन्चओ विष्पमुक्के) विहगपक्षी की तरह वह सर्वत. विप्रमुक्त होता है परिग्रह से वर्जित होता
fee fotosवे "मासी घर भने भासो हुजननी अहर वायुनी असर રહિત સ્થાનમા રાખેલ દીવાની મળગતી જવાળા જેમ નિષ્પક પ ( સ્થિર ) હાય છે તેમ માધુ પણ દૈવાદિષ્કૃત ઉપસર્ગી નડતા છતા પણુ ધમ ધ્યાન આદિમા यस रहे छे " जहा खुरो चेव एगधारे " प्रेम क्षुरा-अस्त्रो भेट धारवाणी હાય છે તેમ માધુ પણ ઉત્સુગરૂપી એક ધારવાળા હોય છે એટલે કે સાધુની મનેવૃત્તિ પ્રકૃષ્ટ વિશુદ્ધિને માટે વધતી જ રહે છે, તે પ્રતિપાતિ પરિણાभोवाणा होतो नथा “ जहा अहीचेत्र एगदिट्ठी ” नभ साथ गोड दृष्टिवाणी હાય છે તેમ સાધુ પણ પાતાના લક્ષ્યરૂપ એક મેાક્ષમાજ લીન દૃષ્ટિવાળા હાય छे" आगास चेन निरालवे " आधरानी प्रेम ते निरावस भी होय छे भेटते કે સાધુને ગામ, દેશ, કુળ આદિનુ અવલ મનહાતુ નથી તે ગ્રામાદિ સમસ્ત અવલ બનાી રહિત હાય છે "विहगे विव सव्वओ विप्पमुक्के " विडग પક્ષીની જેમ તે સ પ્રકારે મુકત હોય છે-પરિગ્રહ રહિત હોય છે “
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