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सुदशिनी टीका भ० ३ सू० १ अदत्तादानस्वरूपनिरूपणम्
२६१ व्यसनराजादि कृतोपद्रः, इत्येतेपा मार्गणम् गवेषणम् , तथा उत्सवेपु-विवाहादिलक्षणेपु मत्तानाम्जयपानाद्यासताना अत एस प्रमत्तानाम्-असावधानानां प्रसुप्ताना-निहिताना च वचनचनापहरग, तथा जाक्षेपण-मन्नौप यादिभिश्चित्त विक्षेपकरण, पातन मागवियोजीकरण यम्यादिभिस्ताडन वा तेषु परा = तथा अनिभृतः प्रशान्त परिणाम = अन्तःकरणत्तिविशेप. येपा ते तथा, ते च ते तस्करानना. चारगणातैर्महुमत-मातिशयमादृत स्वीकृत यत्तत्तयाभूतमदचादानम् 'अफलुग' अफरण-दयारहित निर्दयजनप्रवर्तितत्वात् रायपुरिस प्राप्ति आदिरूप आपत्ति की, ( वनण) व्यसन को-राजा आदि द्वारा कृन उपद्रव की-भी ( मग्गण ) गवेपणा-ताक में तत्पर रहते है । तथा (उस्सव ) विवाह आदि उत्सवों में (मत्तप्पमत्त ) मद्यपान आदि के कर लेने से अमावधानी मे पडे हुए मस्त व्यक्तियों के तथा ( पसुत्त) निद्रा में पडे हा व्यक्तियों के (वचण) वनापहरण करने मे (आखिवण ) आक्षेपणमत्र औपधि आदिद्वारा चित्त के विक्षेप करने में, तथा (घायणपर ) प्राणों के अपहरण करने में अथवा अपने मित्रादिकों द्वारा ताडन करवाने में तत्पर रहा करते हैं। (अइणियपरिणाम ) इस अदत्तादानरूप कुकृत्य को करने वाले जीवों के परिणाम-अन्तः करण की वृत्ति-अशान्त रहती है। (तकरजणबहुमय) यह अदत्तादान चोर व्यक्तियों द्वारा ही सातिशयरूप में आहत हुआ है। अतः यह दुष्कर्म (अकलुण) निर्दयजनो द्वारा प्रवर्तित होने के कारण स्वय दया ररितरूप है इमीलिये ( रायपुरिसरक्खिय ) राजपुरुपों द्वारा यह निपित २७ छ “विधुर" विधुरनी-४ प्रति माह ३५ भापत्तिनी," वसण " व्यमननी infe गयेव पदना-पY ' मग्गण " गवेष!-तपासने भाटे तैयार हे छ तथा “ उस्सव" विपाड सामा, “ मत्तप्पमत्त" भद्यपान मालिन समाधानी रस भरत व्यस्तियाना तथा " पसुत्त" निद्रामा ५उस व्यतिगाना ' पचण" बनने डरी पान “आसिवण" माझे पशु-भत्र सौषधि माहिद्वारा भित्तमा विपन. ४वार तथा "घायण पर" पाए। देवाने अथवा पोताना भित्राहि द्वारा मा२ भगवाने त५२ २९ छ "अणिहुयपरिणाम" ते महत्ताहान३५ हुत्य ४२ना२ वानी भनेत्ति २iard २९ छ “ तकरजण पहुभय " मा महत्ताहान या२ all द्वारा ११ पधारे प्रमाणभा संपदामा भावे तथा ते दुध “अकलुण" नियन द्वा! मायरित डावाने ४२) या२ति डोय छे तेथी " राय