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सुदर्शिनी टीका अ० : सू० २ अदत्तादाननामनिरूपणम्
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कर्म हुलस्य =तन पाप = प्राणातिपातादिक कलि = युद्ध कलुपाणि= मलिनानि कर्मा णि= मित्रद्रोहादिव्यापारवाणि बहुलानि बहूनि यत्र तत्तथा तस्य ' आदिष्णादाणस्स' अदत्तादानस्य 'एयाणि 'एतानि पूर्वोक्तमकाराणि 'एवमाईणि' एवमादीनि = चौरिक्यादीनि 'तीस ' निशत् 'नामधेज्जाणि हुति' नामधेयानि भवन्ति ॥ ०२ प्राणातिपातादिक पाप, युद्ध, मित्रद्रोह आदिरूप मलिनकर्म अधिकता से रहते हैं (अदिष्णादाणस्स ) अदत्तादान के ( ण्याणि एवमाईणि ) ये चोरी आदि (तीस) तीस ( नामवेजाणि) नाम (हुति ) है |
भावार्थ - चोरी चोरों का कर्म है इसलिये अदत्तादान का नाम चौरिक्य है १ । चोरी करने वाला बिना पूछे ही दसरों के द्रव्य का हरण करते है इसलिये इसका नाम परहृन है २ । चोरों को कोई बुलोकर अपना द्रव्य नहीं देता है इसलिये इसका नाम अदत्त है ३ । निर्दय वनकर ही यह कर्म किया जाता है मदय होकर नहीं, इसलिये इसका नाम कूरिकृत है ४ । इसमें दूसरे के द्रव्य का लाभ होता है अतः यह पर लाभ कहा जाता है ५ | इस कृत्य मे न इन्द्रिय सयम रहता है और न प्राणि सयम हो, अत यह असयम नाम से कहा गया है ६ । इसमें परधन मे गृद्धि होती है अतः इसका नाम परधनगृद्धि है ७ । इसमें परिणामों में लोलुपता अधिक रहती है इस लिये इसका नाम लौल्य है ८ | तस्करो का यह भाव है इसलिये इसका नाम तस्करता है ९ । इसमें
दोणरस " सत्ताहानना एयाणि एनमाईणि " ते थोरी आहि " तीस " श्रीस नामघेज्जाणि " નામ हुति "छे,
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ભાવા—(૧) ચારી કરવી તે ચાર લોકેાનુ કાર્ય છે તેથી અદત્તાદાનનુ "चौरिक्य" नाम छे (૨) ચારી કગ્નારા પૂછ્યા વિના જ ખીજાના દ્રષ્યનુ २ रे छे, तेथी तेनु नाम " परहृत" ) (3) योशेने ખાલાવીને કાઈ घोतानु द्रव्य हेतु नथी, तेथी तेनु नाम “अदत्त" छे (४) निर्दय मनीने ४ ચારી કરાય છે, સય યઈને નહીં, માટે જ તેનુ कूरिकृत" (५) तेभा मीलना द्रव्यनो साल ( प्राप्ति) थाय हे, तेथी तेने “लाभ” उडेवामा आवे छे (૬) આ નૃત્ય કરતી વખતે ઇન્દ્રિયાને સયમ રહેતા નથી અને વાણી સયમ પણ રહેતા નયી તેથી તેનુ નામ परधनमा गृद्धि-सासमा थाय छे, तेथी तेनु તેનાથી પરિણામે મા-વૃત્તિમા લાલુપતા વધારે
નામ
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" असयम छे (७) ते नारने नाम " परधनगृद्धि " छे (८) પ્રમાણમા રહે છે, તેથી તેનુ
नाभ" लौल्य " हे (स्) तन्जेशनी ते वृत्ति लावना होय छे, तेथी तेनु नाभ