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प्रमण्याकरणसूत्रे 'तत्य वि' तत्रापि 'गोम्मिकपहारदमणनिमच्छणायययणभेसणगभयाभि-- भूया' गोल्मिकमहारदरननिर्भत्सनस्कनचन भीपणकमयाभिभूता-तत्र गोलिम काना-कोटपालाना ये महाराः कशाघापाताः दयनानिपूर्यतापादौ उपतापनानि निर्भत्सनानि = जातिकुलादिनामोच्चारणपूर्वफगालिदानानि कदुकवचनानि च 'रेनीच ! रे दुष्ट !' इत्यादि रूपाणि मीपणकानि=भयजनकानि 'जीवनपर्यन्त कारागृह ए म्रियस्य' इत्येवमादिरूपाणि तेपो भयेन अभिभूता ये ते तथा 'अक्खित्तणिवसणा' आक्षिप्तनिवसनाः = कर्पणधर्पणादिभिराष्टपरियानवस्त्रा नग्नीकृता इत्यर्थः, 'मलिगडडिखडक्मणा' मलिनदण्डिखण्डयसना =तर मलिन 'डण्डि' सीवित 'डण्डि' इति सीवितपत्राको देशीशदः, खण्ड-फाटित च (तत्थ वि) वहा पर भी वे (गोम्मियप्पहार) कोटपालोंके कशा(कोडा)दिद्वारा प्रदत्त आघातों को, (दुमण) दवनी को-पूर्यताप आदि मे खड़े करने रूप उपतापनो को, (निभच्छण) निर्भर्सनो फो-जातिकुल आदि के नामोच्चारणपूर्वक गालीगलौज आदिको तथा ( कट्टयवयण) कटुक वचनो को जो कि " अरे नीच ! ओ दुष्ट ! जीवनपर्यन्त तू इस कारा गार में ही सड २ कर मर" इत्यादिरूप से (भेसणा) भयप्रदशेक शेते हैं-सहते रहते हैं ( भयाभिभूया ) उनके भय से अभिभूत होते हैं, तथा ( अक्खित्तणिवसणा) कर्पण घर्पण आदि के करने से इनका परिधान वस्त्र खुल जाता है, अर्थात्-ये नग्न हो जाते हैं-नगे कर दिय जाते हैं। (मलिणडडिखडवसणा) ऐसी स्थिति में उन्हें जो वहा वस्त्र खड पहिरे को मिलता है वह बिलकुल मलिन होता है। बीच २ में सिला हुया रहता है । तथा कहीं २ फटा भी रहता है । यहा " डण्डि" शब्द " पवेसिया" पूरी छ "तत्थ वि" त्या पर तेसोटी “गोम्मियप्पहार"
टपास दारा ४२पामा पावता यामुना प्रडा “ हमण" -सूर्यना तापमा उमा सभान ७२वामा मावतु इडन, निभच्छण" निसनाजति on मानि म सहित अपाती आजोन, तथा "कडुयवयण" ४४ વચનને, જેમ કે “હે નીચ! હે દુષ્ટ ! તું આખું જીવન આ કારાગૃહમાં જ सडीन सीन भ२!""भेसणग" सहन ४ा ४२ छ, “ भयाभिभूया" ते प्रारना लयथी लयलीत २ छ, तथा “ अक्सित्तणिवसणा" मेन्या थी ४२ વાથી તથા ઘસડવાથી તેમના વસ્ત્રો ખમી જાય છે તેઓ નગ્ન થઈ જાય છે तभन न राय छ “ मलिणडडिसडवसणा" सेवा समातमन त्यारे વસ્ત્રખંડ પહેરવાને મળ્યા હોય છે વચ્ચે વચ્ચે શિગડા વાળા હોય છે, તથા