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प्रमायाकरणस्ने नायमुणिणा भगवया पन्नविय परूवियं पसिद्ध सिद्धवरसासणमिणं आपविय सुदेसिय पसस्था वीयसबरदारसमत्तीत्त बेमि।सू०९॥
॥ इय पण्हावागरणे वीयं संवरदार समत्त । टीका-'एच' पोक्तप्रकारेण 'इण 'द सरस्स ' रागरस्य 'दार' द्वार-सत्यवचन नाम द्वितीय दारमित्यर्थ , ' सम्म 'सम्यर 'सबग्यि ' सच रित सत् 'होड' भाति, 'मुप्पणिहिय' 'सुपणिहित समारापितम् । तथा-'इमेहि' एभिः 'पचहि पि' पञ्चभिरपि ' फारणेहिं 'कारण:-भावनामि , कीदृशैः का रणैः ? इत्याह-' मणवयणकायपरिरक्तिह' मनोपनकायपरिरक्षित. मनोवा फायपरिरक्षितपञ्चभावनाभिरित्यर्थ , 'निच्च ' नित्यम् ' आमरणत च ' आमर णान्त=मरणपर्यन्त च ' एस जोगी' एप योग मत्यवचनम्पो योग' 'णेयवो'
इस प्रकार सत्यव्रत की स्थिरता के निमित्त पाच भावनाओं को कहकर अप सूत्रकार इस द्वितीय सवरद्वार का उपसहार करते हुए करते हैं-' एवमिण , इत्यादि ।
टीफाई-'एच) पूर्वोक्त प्रकार से (इण) यह (सरदार) सत्यवचन ____नामक द्वितीय सवरद्वार (सम्म-सचरियं ) अच्छी तरह से पाले जाने
पर (सुप्पणितिय ) सुरक्षित (होह) हो जाता है। (इमेहिं पचहिं वि कारणेहिं मणवयणकायपरिरक्खिहं ) इसलिये मन वचन और काय इन तीन योगो से अच्छी तरह सुरक्षित किये गये इन पांचभावनारूप कारणों से (निच्च ) सदा (आमरणत च) जीवन भरतक ( एसजोगो) यह सत्यवचनरूप योग (धिइमया मइमया) स्वस्थचित्त से एव हेयो
આ રીતે સત્યવ્રતની સ્થિરતાને માટેની પાચ ભાવનાઓ વર્ણવીને હવે सूत्रधार मा भी सवारना सहार ४२ता -" एवमिण" त्याl
साथ---" एव" पूर्वात प्रकारे ॥ " इण" " सवारसदार "सत्य पयन नाभनु मी सवार “ सम्म-सचरिय" सारी शत पाय ता " सुप्पणिहिय" सुरक्षित " होइ" and " इमेहि पचहि वि कारणेहि मणवयणकायपरिरक्सिएहि " ते डरो मन, वसनसने अयमे त्राणे योगाथा सारी रीत सुरक्षित ४२रायेदा म पायमापना३५ शाथी “निच्च" मा " आमरण त च" वन पर्यन्त " एसजोगो, मा सत्यवयन३५ थान "विडमया मइमया" स्वस्थ यित्त भने योपादेयता विवथी युश्त यस भुमिना "णेयव्यो " पासन ४२३॥ योग्य छ २ मा सत्यमावत