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प्रेमायाकरणसूत्रे गुणाः क्षान्त्यादिस्पास्त एर कुसुमानि-पुष्पाणि तः समृदः, तथा 'सीरमुगयो' शीलमुगन्धः, शील सदाचारो नामचर्य ना, तदेव शोभनो गन्यो यस्मिन् सः, तथा-'अगव्हयफलो' अनामफल आयोनार्मोदयः, न आवमोऽनाया, स एच फर यस्य सः, आसपनिरोधस्पफलसम्पन इत्यर्थः, 'पुणो य' पुनश्च 'मोक्खपरवीयसारो' गोक्षारसीजमारसमोसार' परमोक्षः-भयानाथ सुख रूपः, तस्य नोजसार:-श्रेष्ठ गीजरूपः, ता- 'मटरगिरिसिहरचूलिया हर' मन्दरगिरिशिखरचलि कर मन्द गिरः मेरुपरतस्य यत् गिावर तस्य या चूलिका चूडा सेच, तथा 'इमस्स ' अभ्य-ममिदस्य 'मोकामरगुत्तिमग्गस्स' मोक्षयर मुक्तिमार्गस्य मोक्षः सकलरमशयल मण,तदर्थों वरः श्रेष्ठो मुक्तिम्पो-नि भता रूपएव मार्ग'-पन्थान्तस्य 'सिहरभूओं' शिवरभूतः एतादृशः 'सबरनरपायवो' सवरवरपादप' सवसआस्रवनिरोधः, म एर वरपादप =श्रेष्टरक्षोऽस्ति । एता दृशमिद 'चरिम' चरमम् = पञ्चमु सपरद्वारेप्वन्तिमम् , ' मवरदार ' सरद्वारम् , अस्ति ॥ १० १॥ चना रहता है । (सीलसुगधो) सदाचार अथवा ब्रह्मचर्य इसकी सुहावनी गध है, अणण्हवफलो) आस्रव-नवीन कर्मों के आगमन का जो रुकना होता है वही इसका फल है-इन फलो से ही यह युक्त बना हुआ है। (पुणो य ) फिर (मोक्खवरवीरसारो) अव्यानाध सुखवाले मोक्ष का यह एक श्रेष्ठ बीज है। (मदगिरिसिर चूलिया इय) सुमेरु पर्वत के शिखर की चूलिका के समान है (इमस्स मोरखवरमुतिमग्गस्त सिह हरभूओ) इस प्रसिद्ध सकल कर्मक्षय मोक्ष का जो निर्लोभतारूप माग है उसका शिखग्भूत है । (सवरपायवो) हम तरह का यह सवररूप श्रेष्ठ वृक्ष है। इस प्रकार (चरिम सबरदार ) पाच सवर द्वारो में यह अन्तिम सवर द्वार कहा गया है। मने गुऐ। ३पी पुरुषोया ते सहा समृद्ध २ "सीलसुगधो" सहायार मथवा प्रायः ॥ तेनी मुहर १ छ, " अणण्हवफलो" मासव-नवा भाना આગમનનુ અટકવુ-એજ તેના ફળ છે એ ફળેથી જ તે ચુક્ત હોય છે " पुणोय " qणी "मोक्खवरवीयसारो" अध्याय सुजवा भानु त सष्ट योर ले “मदरगिरिसिंहरचलियाइव" सुभेस पतन शिमरना
त्य समान), "इमस्स मोक्पवरमुत्तिमगास्स सिहरभओ" से प्रसिद्ध म કર્મક્ષય મોક્ષને જે નિર્લોભતા રૂપ માર્ગ છે તે તેના શિખર સમાન છે "सवरपायवो" प्रहारनु । सप२३५
J छ २१ प्रारे "चरिम सवरदार" पाय मारमानु या मतिम २२ १२२ ४उवायु छ