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रणनिमित्त ' मग
ध 'गुशिरिनर प्ररूपितम् । पप गरी भागमा गुशिFr-'अराहियजामहितमन्त्रात्मना तिसारस्पना-मामArnमागरेऽपि भूमफरदायकम अत एव-' मागगमित मागिले-मन्त्रागकारक।
या 'सुद 'रनिहीतान..-'गाय' यागिम् , गीतरागमा तत्यान-नया-अादिल' भाटिया-पगुमानरचान 'प्रगुता अनुलाम्-सव श्रेष्ठत्वाद , तगा 'मनापा' पापानांगरलाखननकाना णीयायप्रविधकर्मणा पिउगमण गुपगमनागमनकास पता भवचन मगरता गुरपितमित्पर्ण ॥५० ॥ ____ अस्प रतीयमतस्य पानावनाः प्रतिपादयन् सम्प्रतिरिक्तवरातिवासामिया प्रयमा भावनामाह--'समा' स्वादि ।
मूलम्-तरस इमा पचभावणाओ तइयरस वयस्त हुति, परदनहरणवेरमणपरिरखणयाए । पढस देवकुलसभा पवा गया थर भत्यक्षीभूत प्रवचन, परद्रव्यविरमणरुपमहाव्रत की परिरक्षा के निमित्त भगवान ने विस्तारपूर्वक प्ररूपित किया है। यह प्र (अत्तयि ) आत्मा का हितकारक है, (पेच्चाभारिय) जन्मान्त भी शुभफल का प्रदाता है, इसीलिये या (आगमेसिभद्द ) भाल काल में कल्याण कारक कहा गया है। (मुद्ध) यह निषि हान शुद्ध है, (नेयाउय) वीतराग प्रभु द्वारा भाषित होने से न्यायसपना (अडिल ) ऋजुभावका जनक होनेसे अटिल है, (अणुत्तर) सका होनेसे अणुत्तर है तथा (सचरखपायाण विउसमण) सकल दुःखजन ज्ञानाचरणीय आदि अष्टविध कर्मो का सर्वथा प्रशमनकारक है। सू०५॥ ભૂત પ્રવચન પરદ્રવ્ય વિરમણરૂપ મહાબતની પરિરક્ષાને નિમિત્તે ભગવાને विस्तारभू पित रेख छ । अपयन " अत्तहिय " मानु त४१२७ छ, "पेच्चाभाविय " मास्तरमा ५५ शुसानु ना३ छ तथा त "आगमेसिभ" लाविष्यमा या २४ तावामा माव्यु छ “सुद्ध'।
निहार डापाथी शुद्ध छ, “ नेयाउय " यात प्रभुदास उथित पाथी न्याययुत छ, " अकुडिल " गुमापनु a पाथी भरिख छ, “ अणुत्तर " सब ० पाथी मनुत्तर छ तथा "सम्बदुक्खपावाण विसमण" सण ખજનક જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ પ્રકારના કર્મોનુ સવથા પ્રશમનકારક છે "
जनक