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सुदशिनी टीका अ०४ सू० २ ग्रामचर्यम्बम्पनिरूपणम् हिण' ओपधीनाम्=ओप युत्पत्तिस्थानाना म ये हिमवान पर्वत इव । ' सीतोदा चेर' सीतोदेवानामर याता महानदीव 'निम्नग,ना' निम्नगानाम् नदीना मध्ये । ' उदहीसु ' उदधिपु-समद्रेषु ' सयभूरमणो' स्वयभूरमण समुद्रः 'रुय गवरो चेर' रचस्वर इन-यथा रुचकार:-रुचकाभिधानत्रयोदशद्वीपवर्तीपर्वतचिोपः, 'मडलिकपध्धयाण' माण्डरिकपर्वताना मानुपोत्तरकुण्डलवररचावरा मिधाना गरे 'पररे' प्रवर श्रेष्ठ । ' एरापण इर' ऐरावण व 'कुजराण' कुशराणा मय, यथा हस्तिना मध्य ऐगरत भवर इत्यर्थः । 'जहा' क्या 'मीठो ' सिंह मिगाण' मृगाणाम् अरण्यपशूना मध्ये ' पवरो' प्रपरः यथा'गुपण्णगाण न' सुपर्णकानामुपर्णकुमाराणा मध्ये 'वेणुदेवे ' वेणुदेवः प्रवरः यथा च 'पग इदराया' पन्नगेन्द्रराज , ' धरणे' धरणो-धरणेन्द्रो नागकुमाराणा मध्ये मरर, तथैवेद ब्राम पर्य प्रताना मध्ये प्रवरम् । तथा-कप्पाण' फ्ल्पाना-देरलोकाना मध्ये 'बगलोए चेव ' ब्रह्मलोक इव-पञ्चमो देवलोकः पर्वत, (निगाण मीतोदा चेव ) नदियों मे जैले मीतोदा नदी, (उद तीस जहा सयभूरमणो) समुद्रों मे जसे स्वयभूरमणममुद्र, (मडलिगपचयाण स्यगवरी चेय ) माडलिक पर्वतों में जैसे रुचक वरपर्यंत, (पवरे ) श्रेष्ठ माना जाता है, उसी प्रकार समस्तवतो में यह वत श्रेष्ठ माना गया है। तथा (कुजराण एरावण इव) हाथीओ मे जैसे ऐरावत हाधी श्रेष्ठ होता है (मिगाण जहा सीहो पवरो) 'गो के बीच मेंजगली जानवरों मे-जैले सिंह श्रेष्ठ होता है (सुपन्नगाण च वेणुदेवे सुपर्णकुमारों में जैसे वेणुदेव श्रेष्ठ होता है, (जहा पन्नग इदरायाधरणे) पन्नगों का इन्द्रराज धरणेन्द्र जैसे नागकुमारों में श्रेष्ठ होता है, (कप्पाण चेव यमलोए) करपो में जैसे पांचवा ब्रमलोक प्रवर होता है, "ओसहीण हिमव तो चे" श्रीपधियाना 64न्ति स्थानमा म हिमालय पर्वत, "निन्नगाण सीतौदा चेय" नहीयामा भशीत नही " उदही सुजदा सयभूग्मणो" समुद्रोमा म २१य सूरभए समुद्र “मडलिगपव्वयाणरुयगवरो चेच " भाति पर्वतमा म २५४१२ पर्वत, “पवरे" श्रेष्ठ भनाय छ, તે જ પ્રકારે સઘળા ગ્રામ આ બ્રહ્મચર્યવ્રત શ્રેષ્ઠ મનાય છે તથા “નराण एरावण इव" हाथीगामा म मेरा हाथी १०० सय छ, “ मिगोण जहा सीहा पपरो" भगानी 4-4- सी नपरेनी ५२२-२ सि श्रेष्ठ डाय ते, “ सुपनगा प वेणुदेवे" सुपए शुभाशमा म योद्वेष श्रे हाय छ, “जहा पन्नग इदराया धरणे" पनगोन। छन्द्र ५२ नागर भाभा श्रे०४ डाय छे, “ कप्पाण चैव वमलोए" पोमा रेभ पाया