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प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका-'वीय ' द्वितीया स्त्रीकथापिरतिलक्षणा माननामाह----
'नारीजणस्स' नारीजनस्य-त्रीपादो 'मज्झे' मध्येऽन्तराले न-नैव 'कहेयच्या' कथयितव्या ' कहा' पथावाक्यप्रान्धरूपा । कथामेव विशिनष्टि'विचित्ता' विचित्रा विचित्ररत्तान्तसमन्त्रिता, तथा-'विन्योकपिलाससपउत्ता' 'विन्योकविलाससप्रयुक्ता-पियोका अत्यभिमानपशादिप्टेऽपि वस्तुन्यनादरफरणम् , तदुक्तम्-'निनोकस्त्वतिगर्नेण वस्तुनीप्टेऽप्यनादरः, इति । विलास!= स्थानासनगमनानां हस्तभ्रूनेत्रकर्मणा चैत्र यो विशेषः सातदुक्तम्-" स्थानासनगमनाना इस्तभ्रूनेत्रकर्मणा चैव । ____ उत्पद्यते विशेपो यः शष्टः स तु दिलास' स्यात् ।। " इति । विनोकवि
अय सूत्रकार स्त्रीकथाविरति नामकी द्वितीय भावना को प्रदर्शित करते हैं-'वीय नारीजणस्स' इत्यादि।
टीकार्थ--(पीय दूसरी स्त्रीकथाविरति रामकी भावना इस प्रकार से है- (नारीजणस्स मज्झे) स्त्रियों के बीच में बैठकर साधु को ( कहा ) कथाएँ कि जो (विचित्ता) विचित्र वृत्तान्तो से युक्त हो (विन्योकविलाससपउत्ता) इष्ट वस्तु में भी अनादर कराने वाली हो तथा विलासभाव बढानेवाली हों (न कहेयव्या) नही करना चाहिये। अति अभिमान के वश से इष्ट वस्तु में भी अनादर करना इसका नाम विन्चोक है, तथा स्थान, आमन, गमन में एक हस्त, भ्र, नेत्र इन की क्रियाओं में विशेषता आना इसका नाम पिलास है। ये दोनों प्रकार की विशेप चेष्टाएँ स्त्रियों मे शृगारभावजनित हुआ करती हैं। विश्वोक और विलास इन दोनों से जो कथाएँ युक्त हो वे साधु को
हवे सूत्रा२ “नीकथाविरति" नामनी भी भावना मता छ"बीय नारी जणरस" त्यहि
-- 'बीय"श्री ४ा नामनी भावना मा प्रमाणे -" नारीजणस्स मझे" स्त्रीमानी -ये मेसीन साधुसे मेवी “कहा" उथामा २ "विचित्ता" विचित्र वर्णन पाणी जाय “पियोकविलाससपउत्ता" टवस्तुमा पY मनाहर
शवनाशाय तथा विसासमा धापनाशाय "न कहेयव्वा' ते ४वान નહી અતિ અભિમાનને વશ થઈને ઈષ્ટ વસ્તુને પણ અનાદર કરે તેને વિવેક કહે છે, તથા સ્થાન, આસન, ગમનમાં અને, હાથ, જૂ નેત્ર વગેરેની ક્રિયામાં વિશેષતા આવે તે વિલાસ ગણાય છે એ બંને પ્રકારની વિશેષ ચેષ્ટાઓથી સ્ત્રીઓમાં શ્રગાર ભાવ પેદા થાય છે વિવેક અને વિલાસ એ બનેથી