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प्रश्नन्याकरणसूत्रे गृहस्थावस्थाकालिकी कामरति , पूर्वकीडितम् गृहस्थातम्याश्रितं मीभिः सह क्रोडनम् , पूर्वसग्रन्यसस्तुताः-पूर्व गृहस्थावस्थाया ये सग्रन्या श्वसुरकुरमान्य सवद्धा श्यालकश्यालिकादयः पालकमार्यादयश, तया-सस्तुता दर्शनभापणादिभिः परिचिताः, एपा द्वन्द', एते अमणेन न द्रष्टुन कथयितु न वाम्म लभ्याः इति परेण सरन्धः । तथा-'जे ते ये ते 'जागाह विवाहचोकम' आगाहति वाहचूलकेपु, तत्र-आवाहो-च वापरगृहानयनम् , विवाहा आगिग्रहण, चूरक
अब इस व्रत की चौथी भावना को करते है--' चउत्य पुवरय०' इत्यादि।
टीकाथ-(चउत्य) ब्रह्मचर्य व्रत की पूर्वरत पूर्वक्रीडित स्मरणविरतिनाम की चौकी भावना इस प्रकार है-(जे ते ) जो वे (पुधरय पुधकीलियासगवसयुरा) पूर्वरत गृहस्थावस्था में जो कामकेलि की गई हो वह पूर्वरत है। गृहस्थावस्था में जो स्त्रियों के माय कीटा की गई हो वह पूर्वक्रीडित है । तथा-गृहस्थावस्था में जिनके साथ श्वातुर, साले, साली, आदि का सवध रहा हो, वे पूर्व सग्रन्य है और जिनके साथ दर्शन भापण आदि से अधिक परिचय रहा हो वे पूर्वसस्तुत हैं। इन सब का ब्रह्मचर्य महाप्रत धारण करने वाद साधु को न स्मरण करना चाहिये, न उनका कथन करना चाहिये और न सवधी आदि जनों को देखने की लालसा ही रखनी चाहिये ! तथा ( आवार विवाह
वे मानतना याथी भावनानु ४थन ३२ छ " चउत्थ पुयरय" त्याह
1-" चउत्थ" प्रायय प्रतनी याथी लावना" पूर्वरतपूर्वमीडित स्मरणविरति ' नामनी ते मा प्रमाणे --"जे ते पुवरयपु वकीलिय पुरसगथसथुरा" पूर्वरत-न्यावस्यामा २ मी31 3A डाय ते पूरत કહેવાય છે ગૃથાવસ્થામાં સ્ત્રીઓની સાથે જે કીડા કરાઈ હોય તે પૂવ કીડિત કહેવાય છે તથા ગુસ્થાવસ્થામાં જેમની સાથે સમગ, સાળા, સાળી આદિને સબંધ રહ્યો હેય ને પૂર્વ સગ્રન્થ કહેવાય છે અને જેમની સાથે દર્શન, ભાષણ આદિથી વધારે પરિચય રહ્યો હોય તેઓ પૂર્વ સસ્તુત કહેવાય છે બ્રહ્મચર્ય મહાવ્રત ધારણ કર્યા પછી સાધુએ એ બધાનું સ્મરણ કરવું જોઈએ નહી, તેમની વાત કરવી જોઈએ નહીં અને સ બધી આદિ જનેને જોવાની खासमा रामवासनही तथा आराहविवाहचोलकेसमयावा--धूने वरना ઘેર લાવતી વખતે, વિવાહ પ્રસ ગે, તથા બાળકના ચૂડાકર્મ સસ્કારના