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प्रश्नध्यापरणसूत्रे पवित्रकारीत्यर्थः, तथा- सिद्विविमाणगांगुयदारं ' सिधिनिमानापातवा रम्-सिद्धेः-मोक्षगते , विमानानाम् अनुत्तरविमानानाम् च, अपारतम्-उद्घाटित द्वार-प्रवेशमुख येन तत्तथा, स्वीपरर्गद्वारोदाटकमित्यर्थः ॥ २॥ पुनः कीदृश ब्रह्मचर्यम् ? इत्याह-'देवनारद ' इत्यादि । 'देवनरिंदनममिय पुज' देवनरेन्द्र नमस्थितपूज्यम्-देवाः भानपत्यादयः, नरेन्द्रा चक्रपदयम्तः नमस्यिता % नमस्कृता ये महापुरुषास्तपा पूज्यम्नादरणीयम् । तथा-' सधनगुत्तममगल. मग्ग' सर्वजगदुत्तममगलमार्गःसर्वजगत्सु-निपु लोकेषु उत्तमो मगल्न यो मार्गः उपाय , सोऽस्ति । तथा- दुरिस' दर्पम् देनदानवैरप्यपरिभानीयम् , 'गुण नायग' गुणनायक-गुणान-ज्ञानादिरूपान नयति मापयति यत्तत्ताटशम्-गुणधायकमित्यर्थः, तथा-' एक्क' पक-प्रधानम्-निरुपम इत्यर्थ , तथा 'मोक्ख पहस्स' मोक्षपथस्य मोक्षमार्गस्य ' पटिसगभूय ' जयतमाभूतम्-शिरोभूपगसदृशमिद ब्रह्मचर्यमस्ति ॥ ३ ॥ इसका ही प्रभाव सय को पवित्र और सारभूत बना देता है । अर्थात् यह व्रत समस्त व्रतों को पवित्र और दृढ़ करने वाला है। (सिद्विविमाणअवगुयदार) तथा मोक्षगति का और अनुत्तर विमानो का हार इससे खुल जाता है, अर्थात् स्वर्ग और अपवर्ग (मोक्ष) के द्वारका यह उद्घाटक है-खोलनेवाला है ॥२॥ (देवरिंदनमसियपुज्ज) भवनपति आदि देवों द्वारा चक्रवर्ती आदि नरेन्द्रों द्वारा, नमस्कृत हुए ऐसे महापुरुषों के यह पूजनीय-आदरणीय है। तथा-(सवजगुत्तममगलमम्ग) यह तीनो लोकों मे उत्तम और मगलकारी मार्ग है। तया (दद्धरिस) देव और दानवोसे भी यह पराजित होने वाला नहीं है (गुणनायग)ज्ञानादि सदगुणो को यह प्राप्त कराने वाला है। (एक्क) यह प्रधाननिरुपम है (मोक्खपदस्स वडिंसगभूय) और मोक्षमार्गका यह शिरोभूषणरूप है।॥३॥ છે એટલે સ્વર્ગ અને અપવર્ગના દ્વારનુ તે ઉદ્ધાટન કરનાર છે-ઉઘાડનાર છે મારા "देवनरिंदनम सियपुज्ज' मनपति मावि सने यती मा नरेन्द्र ५ જેમને નમન કરે છે એવા મહાપુરુષને તે પૂજનીય અને આદરણીય છે તથા " सव्व जगुत्तममगलमग्ग" ते त्रणे सोडमा उत्तम मने भारी भा छ, तथा " दुद्धरिस" वो भने हान। वास ५० ते ५रित थाय से नयी "गुणनायण" ज्ञानादि सगुणाने ते प्रास उरावना छ ' एकक" ते प्रधान -श्रेष्ट-अनुपम छ " मोक्सपहरस वडिंसगभूय " मने भादमागनु शिरे। ભૂષણ રૂપ છે | ૩ |
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