________________
ए९३
-
-
-
सुदर्शिनी टीफा १०४ सू०३ घामचयाराधनफलम्
तथा-'सत्यममुदमहोदहितित्य । सर्वसमुद्रमहोदधितीर्थम्-सर्वे च ते समुद्राः सर्व समुद्रास्तेषु महान उदधि-स्सयम्भूरमण समुद्रात्तुल्य विशालत्वात्ससारोऽपि महोदधिस्तस्य तीर्थमिव-पारगमनाय नौकेर यत्तत्तथाऽरित ॥ १॥
'तित्थगरेहि ' इत्यादि-'तित्वगरेहिं ' तीर्यकरै-जिन ' सुदेसियमग्गं' मुदेशितमार्गम्-सुदेशितः मुदर्शितः मार्गः गुप्त्यादि तत्पालनोपायो यस्मिस्ततया, तथा-'नरगतिरिच्छनिमज्जियमग्ग' नरकतिर्यविवर्जितमार्ग-नरकस्यनरकगते , तिरश्चः तिर्यग्गतेश्च विवर्जित प्रतिरोधितो मार्गो गतिर्येन तादृशम् । स्था-'सयपवितनिम्मियसार' सर्पपविनम्रनिर्मितसार गर्वपवित्राणि-सर्वाणि पावनानि सुनिर्मितानिन्मृविहितानि साराणि-प्रधानानि येन तत्तथा, सफलव्रत
मर्प उसके लिये हार जेमा बन जाता है और विप भी सुसाधु जैसा हो जाता है-जो नौ कोटि से शुद्ध ब्रह्मचर्य व्रत का पालक होता है। यत् ब्रह्मचर्य का ही प्रभाव है जो शत्र भी मित्र बन जाता है।
(मन्चसमुहमहोदहितित्व) समस्त समुद्रों में अतिम स्वयभूरमणसमुद्र एक यहत विशाल समुद्र है-इसके जैसे विशाल होने से ससार भी एक महोदधि जैसा है, उससे पार होने के लिये यह ब्रह्मचर्य एक नौका के समान है ॥१॥ (तित्थगरेहिं सुदेमियमग्ग) तीर्थकर भगवतो ने इसके पालने का गुप्ति आदि रूप उपाय कहा है। ( नरगतिरिच्छविवज्जियमग्ग) इसके प्रभाव से नरकगति और तियञ्चगति का मार्ग रुक जाता है (सव्वपवित्तसुनिम्मियसार ) तथा
જે નવ પ્રકારે શુદ્ધ બ્રહ્મચર્ય વ્રતને આરાધક હોય છે તેને માટે સાપ હાર જેવું બની જાય છે અને વિષ પણ અમૃત જેવુ થઈ જાય છે ब्रायना २५ प्रभाव शत्रु ५५ भित्र मनी लय छ, “सव्वसमुरमहोदहितित्थ " सपा समुद्रीमा मतिभस्य भूरभए समुद्र से घणे विशा સમુદ્ર છે-તેના જેવો વિરાળ હોવાથી સ સાર પણ એક મહાસાગર જે છે, તેને પાર જવાને માટે આ બ્રહાચર્ય એ એક નૌકા જેવું છે ! ૧ છે "तित्थगरेहिं सुदेसियमग्ग” तीर्थ ७२ लगवाना तेना पासन भाट राति माह उपाय मताव्या छ " नरगतिरिच्छविवज्जियमग्ग" तेना प्रमाया न२४गति अन तिय २५ जतिनो भाग मटी तय छ “ सवपवित्त सुनिस्मियसार" मने तेना अमाप सौने प्रवित्र भने सारभूत मनावी ? छ,
से भी प्रत सघणा ताने पवित्र ४८ ४२ना३ छे “सिद्धविमाणअ वगुयदार" तथा मोक्ष गतिनु मने अनुत्तर विमानानु ६० तेनाथी जय
प्र१००