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सुदशिनी टीका अ० ४ सू०२ ब्राययस्वरूपनिरूपणम् प्रवर तथैव व्रताना मध्ये इद ब्रह्मचर्य प्रारम् । तथा-' झाणेमु य' ध्यानेषु चध्यानमध्ये यथा 'परममुष ज्झाण' परमशुल यान-शुरू-यानस्य चतुर्थपादरूपं प्रवरम् , तया-नाणेमु य 'ज्ञानेपु च यथा परम केवल तु परिपूर्णविशुद्धकेवलज्ञान अर्थात्-क्षायिकज्ञान सिद्ध-अपरत्वेन प्रसिद्वम् , तयैवेद ब्रह्मचर्य व्रतानामध्ये प्रसिद्धम्-तथा-'लेसासु य ' लेश्यागु-कृष्णाधासु च यथा, 'परममुक्क लेस्सा' परमशुक्ल्लेश्या-शुक्लध्यानस्य तृतीयभेदवर्तिनी प्रवरा । 'तित्थकरो चेव ' तीर्थकरश्चैत्र 'जहा' यया 'मुणीण' मुनीना मध्ये प्रपर 'पासेसुवर्षेषु क्षेत्रेषु 'जहा' यथा 'विदेहे' पिटेह -महानिदेहक्षेत्र प्रवरम् , तथैवेद व्रतसताना मध्ये प्रारम् । यथा जम्बूद्वीपे 'मदरवरे' मन्दरपरो 'गिरिराया' गिरिरानोन्मेरुपातचैव पर्वताना मये प्रवरः, 'पणेमु ' वनेषु 'जहा' यथास्रसस्थान प्रवर माना जाता है-उसी प्रकार यह ब्रह्मचर्य व्रतों में प्रधान चत माना जाता है। इसी तरह (आणेसु वर मुकद्माण ) चार ध्यानों में जैसे परम शुक्ल यान शुक्लध्यानका चौथा भेद, उत्तम होता है और (नाणेसु य परमकेवल सिद्ध) आभिनियोधिक आदि पांच ज्ञानों मे जैसा केवलज्ञान उत्तम होता है (लेसासु य परममुक्कलेसा) कृष्ण आदि छह लेश्याओं में जैसे परमशुक्ललेश्या-शुक्लध्यान के तीसरे (पाये) पादमें होनेवाली लेश्या-उत्तम होती है (जहा मुणीण तित्थयरो) मुनियो के यीच में जैसे तीर्थकर सर्वोत्तम होते है, तया (वोसेसु जहा विदेहे ) क्षेत्रों में जैसे विदेरक्षेत्र सर से उत्तम क्षेत्र होता है, उसी तरह व्रतों में यह ब्रह्मचर्य व्रत सबसे प्रधान व्रत है। तथा-(मदरवरे गिरिराया) जैसे जबूढीप मे पर्वतों के मध्य में मदर वर गिरिराज श्रेष्ठ है,
સસ્થાન જેમ શ્રેષ્ઠ મનાય છે તેમ આ બ્રહ્મચર્ય વ્રત પણ સઘળા વ્રતમાં भुण्य भनाय छे से प्रभारी “ झाणेसु वर सुफझाण " या ध्यानामा
म ५२भ शुसध्याननी याथो से उत्तम डाय छ, भने “ नाणेसु य परम फेवल सिद्ध " मालिनिमाधि मा पाय ज्ञानामा रेभ वणशान उत्तम हाय छ, “लोमासु य परमसुकलेसा" ! माछि बेश्यासामा म शुस वेश्या-शुसध्यानना श्रीन पहभा-पायामा थनारी सश्या-उत्तम राय छ "जहा मणीण तित्ययरो" भुनियानी ये रेभ तिर्थ १२ मत्तिम डाय छ, " वासेस जहा विदेहे " क्षेत्रामा म विहे क्षेत्र सर्वोत्तम छ, प्रभारी मा अक्षय त सपा प्रतामा प्रधान मत छे तथा “मदरवरे गिरिराया " भ yal पतामा निशि म ४२५२ ४ , “वणेसु जहा पदण