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सुदर्शिनी टीका अष्ट सू० १ 'विनय' प्राचर्य स्वरूपनिरूपणम्
हसग च ' गतिपथदेशक च= गते =सर्गापास्य पन्था' - तुगतिपथस्तस्य देशदर्शक यत्तव तथा-' लोगुत्तम च' लोकोत्तम चलोयेष्ठ 'चयमिण' तमिदम् - ३६ ब्रह्मचर्यरूप नत 'पउमसरतलागपायभूय' पद्मसरस्नडागपालिभूतम् - पद्मप्रधानः सरस्तडागः पद्मपरस्तदाग', पण सरस्तडागइव सुखत्वेन प्रमोदकत्वेन इरत्वेन च समुपादेयत्वाद् र्मोऽपि पद्मसरस्तडागः, तस्य पालिभूत = रक्षास्पेन पालिकल्प यत्तत्, तथा ' महामगडअगर तुनभूय' महाशकटाररूनुम्नभूतम् - महाशकटस्य=अरका इन=अरा परका क्षान्तादयोगुणास्तेपा तुम्नभूतम्, आवार भूतम् तथा 'महाविडिमपक्व भूय' महाविटपवृक्षस्कन्धभूतम् - महान्तो पिटपाः शाखा
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पदेसग च) और उसे स्वर्ग और अपवर्गरूप सुगति के मार्ग को दिखलाता रहता है । इसीलिये ( वयमिण ) यह व्रत ( रोगुत्तम च ) लोकय में श्रेष्ठ है । तथा यह व्रत ( पसरतलाग पालिभृय ) पद्मप्रधान सरोवर और asia की पालि जैसा है, अर्थात् सुग्वद होने के कारण, प्रमोद कारक होने के कारण, और मन को हरण करने वाला होने के कारण जैसे पद्मप्रधान सरोवर और तडाग समुपादय होते हैं उसी प्रकार सुखदाता प्रमोदक और मनोहर होने के नाते धर्म सी समुपादेय होता है- -अतः धर्म भी पद्मप्रधान सरोवर और तडाग जैसा है । उस धर्म रूप सरोवर और तडाग का यह रक्षक होने के कारण पालि-पाल जैसा है। तथा ( महासगडअरगतुनभृप ) महाशकट के आरों के समान क्षान्त्यादिक गुणों का यह तुम्यभूत-आधारभूत है । तथा (महा विडिमरुख खधभूय) महाशाखा शाली वृक्ष के समान आश्रितों
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सह त रोजी हे छे “सुगइपदेसगच" अने तेने स्वर्ग भरे वर्गो ३५ सुगतिना भार्ग दर्शवितु रहे छे तेथी "वयमिणं " माव्रत " लोगुत्तमच " त्र सोभा શ્રેષ્ઠ છે તથા मा વ્રત परमसरतला गपालिभूय " भोथायुक्त सरोवर અને તળાવની પાળ જેવુ છે એટલે કે સુખદે હોવાને કારણે, પ્રમેાદકારક હાવાને કારણે, અને મનેાહર ાવાતે કારણે જેમ પદ્મપ્રધાન સરૈાવર અને તળાવ સમુપાદેય હાય છે તે જ પ્રકાર સુખદાતા, પ્રમાદક અને મનેહર હાવાને કારણે ધમ પણ મમુપાદેય હોય છે તેથી ધમ પદ્મયુક્ત મરેવર અને તળાવ જેવા છે તે ધરૂપ સરેવર અને તળાવનુ ( બ્રહ્મચર્ય રક્ષક
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હાવાથી પાળ જેવુ છે તથા "" महासगडअरगतुन भूय भडा राइट-गोडा-नी ધરીના સમાન ક્ષાન્ત્યાદિ ગુણુાનુ તે તુમ્મભૂત છે તથા क्सधभूय ” મહા રાખાવાળા વૃક્ષની જેમ આશ્રિતાનુ
महाविडिमरुवखપરમ સુખકારી હાવાથી