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থাকলে यस्य स महाविटपः,सचासौ रक्षश्र नाश्रिताना परमोपकारसत्यसायाद धर्मस्तस्य स्कन्धभूत यत्तत्तधोक्तम् , अय भा-यथा सन्धोरसगाग्वाऽऽधारभूतस्तथैवनाम चर्य धर्मशाखाऽऽधारभूतम् । तथा-' महानगरपागारसगाडफलिभूय ' महानगरमाकारकपाटपरिषभूतम्-महानगरमित्र महानगर विविधमुखहेतु साधा धर्मः, तस्य रक्षकत्वात् प्राकाररूप, कपाटरूप पग्विभूतम् = अर्गलारूपम् , यत्तत्तथी क्तम् तथा-' रज्जुपिणद्धोबडदकेऊ ' रज्जुपिनदइन इन्द्रकेतुः यथा-रज्जुबदर न्द्रवजो महोत्सवे सोपरि वर्तमानः परमशोमा जनयति, तथैवेदं सर्वत्रतश्रेष्ठ ब्रह्मचर्यम् । तथा-'विसुद्धणेगगुगसपिणद्ध % विशुद्धानेकगुणसपिनद्ध विशुद्धा येऽ नेकगुणास्तैः सपिनद्ध सग्रथितमिदं ब्रह्मचर्यमस्ति । मू०१ ॥ का परम उपकारी होने से धर्म का यह स्कध जैसा है। अर्थात् जिस प्रकार स्कध वृक्ष की शाखाओ का आधारभूत रोता है उसी प्रकार यह ब्रह्मचर्य भी धर्म की शाखाओं का आधारभूत है। तथा (महानगरपागारकवाडफलिरभूय ) महानगर के समान विविध मुखो का हेतुभूत होने के कारण धर्मरूप नगर का यह रक्षक होने से प्राकार जैसा, कपाट जैसा और अर्गला जैसा है। तया (रज्जुपिणदोव्वइदकेऊ) जिस प्रकार रज्जु बद्ध इन्द्रध्वज महोत्सव में सर्वोपरि वर्तमान होता हुआ परम शोभा को विस्तारता है उसी तरह यह ब्रह्मचर्यव्रत भी सर्वव्रतों में श्रेष्ठ है और परम शोभा का जनक होता है। तथा (विसुद्धणेगगुणसपिणद्ध) विशुद्ध अनेक गुणों से यह ब्रह्मचर्य अच्छी रीति से (सपिणद्ध ) ग्रथित-युक्त है। તે ધર્મના સકધ જેવું છે એટલે કે જેમ થડ વૃક્ષની શાખાઓને માટે આધાર રૂપ હોય છે એ જ પ્રકારે બ્રહ્મચર્ય પણ ધર્મની શાખાઓના આધાર ३५ छे तथा “ महानगर पागार कवाड फलिहभूय " महानामा समान विविध સુનુ હેતુભૂત હેવાને કારણે ધર્મનગરનું તે રક્ષક હેવાના પ્રકાર જેવું, ४ाट २७ मने Ananछे तथा "रज्जुपिणदोव्वइदके" रेभ २०१४ (૨૩) બદ્ધ ઈદ્રધ્વજ મહત્સવમાં સર્વોપરિ દેખાતે પરમ શેભાને વિસ્તારે છે તે જ પ્રમાણે આ બ્રહ્મચર્ય વ્રત પણ સર્વવતેમાં શ્રેષ્ઠ છે અને પરમ समानु न य छ तथा — विसुद्धणेगुगुणसपिणद्ध " विशुद्ध भने गुथी मा प्राययं सारी रीते " सपिणद्ध " अथित-युत छ