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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १ ब्रह्मचर्यस्वरूपनिरूपणम् तधा-'सुह ' सुख-सुखस्वरूपत्वाद , 'सिव ' शिवम् निरुपद्रवत्वात् , तथा'अयल ' अचलम्-म्पन्दनादिवर्जितत्वात् , तथा ' अस्वयकर ' अक्षयकरम् अक्षयो मौतस्तत्करम् भवतीजाडराजननात् , तया-' जइबरमारक्खिय' यतिवरसंरक्षितम् यतिवरैः- मुनिमधानः तीयङ्करगणधरादिभिः सरक्षित परिपालितम् , तथा · सुचरिय ' सुचरितम्-शोभनानुष्ठानम् , तथा-'मुणिवरेहिं ' मुनिपरैःतीर्थंकरादिभिः 'नवरि' केवल 'मुभासिय ' सुभापित-मृष्ठ प्रतिपादितम् , च =पुनः-इट ब्रह्मचर्य 'महापुरिसवीरमरधम्मियधिडमताण ' महापुरुषधीर शूरधामिकधृतिमताम्-महापुरुपा:-पुरुषश्रेष्ठा, धीरशूराः=धीगणां मध्ये सूरा अत्य न्तसादससपन्नाः, धार्मिका धर्मपरायणाः, धृतिमन्तो धैर्यवन्तः, एपा कर्मधारयः, तेपा तथोक्तानाम् 'सया' सदा-कुमारादिसविस्थासु ' सुविसुद्ध' सुहोने से यह प्रशस्त है । (सोम्म ) समस्त मनुष्यों के मन को प्रफुल्लित करने वाला होने से यह मौम्य है। (सुह) सुखस्वरूप होने से यह एक सुख है। (सिवमयलमक्खयकर ) उपद्रव रहित होने से यह शिवरूप है । स्पन्दनादि क्रिया से वर्जित होने के कारण यह अचल है। भवरूप बीज के अकुरका उत्पादक नहीं होने से अक्षय-मोक्षदा कारक है अतः यह अक्षयकर है-1 (जइवरसारक्खिय) मुनिप्रधान-तीर्थकर एव गणधर आदि देवों द्वारा पाला गया होने से यह यतिवर सरक्षित है। (सुचरिय ) शोभन आचार रूप होने से यह सुचरित है। (नपरि मुनिपरेहिं सुभासिय केवल मुनिवरों-तीर्थंकरों द्वारा ही यह अच्छी तरह से प्रतिपादित किया गया है। तथा यह ब्रह्मचर्य महापुरिसधीर-सर- धम्मिय-धिइमताण य सया विसुद्ध ) महापुरुषों का, धीरों के " पसत्थ " नि डापाथी ते प्रशस्त छ “ सोम्म" भरत भनुध्यामा भनने प्रवृत्ति ४२ना२ सापाथी त सौम्य छ “ सुह " भुम२१३५ डोपाथी ते से सुभ छ “सिवमयलमक्सयकर " ५२डित हवाथी ते शिवરૂપ છે ચન્દનાદિ ક્રિયાથી રહિત હોવાથી તે અચળ છે ભવરૂપ બીજના અકુરનુ ઉત્પાદક નહી હોવાથી તે અક્ષય–મોક્ષકારક છે, તેથી તે અક્ષયકર "जइवरसारक्खिय " मुनिप्रधान-तीर्थ ४२ भने गध। माह वो दास पाये छापाथी ते यतिव२ स २क्षित छ “ सुचरिय " सु४२ माया२३५ ते सुयरित " नवरि मुनिवरेहिं सुभासिय" उ भुनिय।-तीय ४२। द्वारा तेनु सारी शत प्रतिपादन ४२॥यु छ तथा “ महापुरिस-धीर-सूरभम्मिय-धिइमताण य सया विसुद्ध " महापुरुषा, धीशनी १२ये ५५ धीर