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এখানে रक्षणनिमित्त ' भगाया' भगाता 'अमहिय ' मुकाधित गाविस्तर प्ररूपितम् । कथ भूतं भवचन भगवता सुकथितम् ? इत्याद-~'अत्तहिय 'जात्महितम् आत्मनो हितकारकम् , तथा-'पेच्चाभानिय 'मेत्यभाविक-जन्मान्तरेऽपि शुभफलदायकम्, अत एव-' आगमेसिभह' आगमिष्यद् भद्रभरियाले-कल्याणकारकम् , तथा 'सुद्ध' शुद्र-निर्दोपत्वात् , पुनः- नेयाउय' नयायिकम् , गीतरागमापि तत्वात्-तथा-'अकुडिल' अकुटिलम्जु मारजनकत्वाद 'अणुत्तर अनुत्तरम्-सर्व श्रेष्ठत्वात् , तथा सम्बदरखपावाण' सर्वदुःखपापाना सफलदाखजनकज्ञानावर पणीयायष्टविधकर्मणा 'विउसमण' व्युपशमन-साधा प्रशमनकारकम् । एतादृशं मवचन भगवता सुकथितमित्यर्थः ॥ ०५॥
अस्य तृतीयवतस्य पञ्चभावनाः प्रतिपादयन् सम्प्रति निरिक्तरसतियासाभिधां प्रथमा भावनामाह--' तस्स इमा' इत्यादि ।
मूलम्-तस्स इमा पचभावणाओ तइयस्स वयस्त हुंति, परदव्वहरणवेरमणपरिरक्खणट्टयाए । पढम देवकुलसभा-प्पवागया यह प्रत्यक्षीभूत प्रवचन, परद्रव्यविरमणरूप महाव्रत की परिरक्षा के निमित्त भगवान ने विस्तारपूर्वक प्रखपित किया है। यह प्रवचन (अत्तहिय ) आत्मा का हितकारक है, (पेच्चामाथिय) जन्मान्तर में भी शुभफल का प्रदाता है, इसीलिये यह (आगमेसिभद्द) भविष्यत् काल में कल्याण कारक कहा गया है। ( सुद्र) यह निर्दोष होने से शुद्ध है, (नेयाउय) वीतराग प्रभु द्वारा भाषित होने से न्यायसपन्न है, (अकुडिल ) ऋजुभावका जनक होनेसे अकुटिल है, (अणुत्तर) सर्वश्रेष्ठ होनेसे अणुत्तर है तथा (सव्वदुक्खपावाण विउसमण) सकल दुःखजनक ज्ञानावरणीय आदि अष्टविध कर्मो का सर्वथा प्रशमनकारक है। सू०५ ॥ ભૂત પ્રવચન પરદ્રવ્ય વિરમણ૩૫ મહાવ્રતની પરિરક્ષાને નિમિતે ભગવાને विस्तारपू' प्र३पित ४२स छ २ अपयन " अत्तहिय " मात्भानु (Sat२४ छ, “पेच्चाभाविय " मातरम पर शुमानु ना३ छ, थी a "आगमेसिभद्द" माविष्यमा ४८या २६ मतावामा माव्यु छ “सुद्ध' तनिष सापाथी शुद्ध छ, " नेयाउय " पातशय प्रभुदा२॥ ४थित पाथी न्याययुत छ, “अकुडिल" agमापनु न वाथी मटिल छ, "अणुत्तर" सव श्रेष्ठ पाथी मनुत्तर छ तथा “सव्वदुक्खपावाण विसमर्ण" स४॥ ખજનક જ્ઞાનાવરણીય આદિ આઠ પ્રકારના કર્મોનું સર્વથા પ્રશમનકારક છે સૂપ